पारिस्थितिक तंत्र क्या है | Paristhitik Tantra Kya Hai

अनुक्रमणिका

पारिस्थितिक तंत्र क्या है, पारिस्थितिकी तंत्र क्या है | Paristhitik Tantra Kya Hai

परितंत्र व्यवस्था या तंत्र है, जो भौतिक पर्यावरण की दशाओं तथा उस में रहने वाले जीवो से निर्मित है। पेड़-पौधे जीव जंतु तथा अन्य सूचना जीव तथा भौतिक पर्यावरण एक साथ मिलकर परितंत्र की रचना करते हैं इसे परिस्थितिक तंत्र भी कहा जाता है। परिस्थितिक तंत्र शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1935 ईस्वी में तान्सले ने किया था उसके अनुसार यह एक ऐसी प्रणाली या व्यवस्था है जिसमें पर्यावरण के सभी जैविक तथा अजैविक तत्वों के बीच अंत क्रिया तथा संतुलन की स्थिति पाई जाती है। प्रकृति में सभी भौतिक अजय तथा आज मिलकर परितंत्र की रचना करते हैं दूसरे शब्दों मैं परिस्थितिकी तंत्र या पारिस्थितिकी विज्ञान की एक क्रियाशील इकाई है जिसमें पर्यावरण के अजय घटकों व जीवो समुदायों की परस्पर सक्रिय का अध्ययन किया जाता है।

अजय तथा जय पर्यावरण के विभिन्न तत्वों के बीच पारस्परिक संबंधों के अध्ययन करने वाले विज्ञान को परिस्थितिकी कहते हैं। मनुष्य परिस्थितिक का सबसे महत्वपूर्ण अंग है वह अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए परितंत्र पर निर्भर करता है साथ ही अपनी आर्थिक क्रियाओं से परितंत्र को प्रभावित भी करता है। जनसंख्या की तीव्र दर से वृद्धि होने के कारण पर्यावरण के संसाधनों का तेजी से हो रहा है इसीलिए परिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं।

पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र किसे कहते हैं | Paristhitik Tantra Kise Kahate Hain

इस पर्यावरण में उपस्थित जैविक समुदाय तथा निर्जीव परिस्थितियों में पारस्परिक क्रिया तथा पदार्थों का आदान-प्रदान होता है, दूसरे शब्दों में जीवित पौधे और जंतु और इनकी निर्जीव परिस्थितियां एक दूसरे पर आश्रित है और दोनों मिलकर एक ऐसा स्थाई तंत्र बनाते हैं जिसके विभिन्न संघटक एक मशीन के पुर्जो की तरह कार्य करते हैं तथा एक समन्वित इकाई बनाते हैं जिसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं।

पारिस्थितिक तंत्र शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम टेंसली नामक वैज्ञानिक ने सन 1935 में किया था टेंसिले के अनुसार प्रकृति में उपस्थित सजीवों एवं निर्जीव की परस्पर या आपसी क्रियाओं के परिणाम स्वरूप बनने वाला तंत्र पारिस्थितिक तंत्र कहलाता है।

पारिस्थितिक तंत्र का आकार 

पारिस्थितिक तंत्र बहुत छोटा हो सकता है जिसे तश्तरी में थोड़ा सा जलिया मृदा का एक छोटा सा टुकड़ा अथवा एक महासागर या बड़े वन जितना विशाल हो सकता है यहां तक की सारी पृथ्वी एक पारिस्थितिक तंत्र मानी जा सकती है पारिस्थितिक तंत्र में एक कल रिक्शा उस पर रहने वाले अन्य जीवो तक भी सीमित हो सकता है 

पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा | Paristhitik Tantra Ki Paribhasha

लिण्डमेन के अनुसार – “किसी भी आकार की किसी भी क्षेत्रीय इकाई में भौतिक – जैविक क्रियाओं द्वारा निर्मित व्यवस्था पारिस्थितिक तंत्र (ecosystem) कहलाती है, ओडम के अनुसार – “पारिस्थितिक तंत्र पारिस्थितिक की एक आधारभूत इकाई है जिसमें जैविक एवं अजैविक पर्यावरण परस्पर प्रभाव डालते हुए पारस्परिक अनुक्रिया से ऊर्जा और रासायनिक पदार्थों के संचार से पारस्थितिक तंत्र की कार्यात्मक गतिशीलता को बनाए रखते है।

पारिस्थितिक तंत्र का चित्र | Paristhitik Tantra Image

पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार | Paristhitik Tantra Ke Prakar

पारिस्थितिक तंत्र मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।

  1. प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र 
  2. कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र 

प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र वे तंत्र होते हैं जिसका निर्माण प्रकृति के द्वारा होता है जैसे वन का पारिस्थितिक तंत्र घास के मैदान का पारिस्थितिक तंत्र मरुस्थल का पारिस्थितिक तंत्र।

कृत्रिम पारिस्थितिकी तंत्र वे पारिस्थितिक तंत्र होते हैं जिसका निर्माण मनुष्य द्वारा किया हो उदाहरण खेत का पारिस्थितिक तंत्र मछली घर का पारिस्थितिक तंत्र आदि।

पारिस्थितिकी तंत्र की कार्य | Paristhitik Tantra Ke Karya

  • प्राथमिक कार्य पृथ्वी पर जीवन का समर्थन करने और चल रही प्रक्रिया को स्थिरता प्रदान करने के लिए आवश्यक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को विनियमित और बढ़ावा देना है।
  • पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न ट्रॉफिक स्तर होते हैं, और एक पारिस्थितिकी तंत्र का कार्य ऐसे सभी ट्रॉफिक लेबल के बीच संतुलन बनाए रखना है।
  • यह खनिजों को चक्रित करने का एक तरीका भी प्रदान करता है।
  • यह जैविक घटकों के साथ अजैविक घटकों की अंतःक्रिया को बनाए रखता है।
  • यह खाद्य श्रृंखला के माध्यम से ऊर्जा प्रवाह को बनाए रखता है।
  • यह पोषक तत्व चक्रण (जैव भू-रासायनिक चक्र) सुनिश्चित करता है।
  • यह पारिस्थितिक उत्तराधिकार या पारिस्थितिकी तंत्र विकास को सुनिश्चित करता है।
  • इसमें होमोस्टैसिस (या साइबरनेटिक) या फीडबैक नियंत्रण तंत्र शामिल हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएं | Paristhitik Tantra Ki Visheshta

  • पारिस्थितिकी तंत्र एक कार्यशील क्षेत्रीय इकाई होता है, जो क्षेत्र विशेष के सभी जीवधारियों एवं उनके भौतिक पर्यावरण के सकल योग का प्रतिनिधित्व करता है।
  • इसकी संरचना तीन मूलभूत संघटकों से होती है-
    • (क) ऊर्जा संघटक
    • (ख) जैविक (बायोम) संघटक
    • (ग) अजैविक या भौतिक (निवास्य) संघटक (स्थल, जल तथा वायु)।
  • पारिस्थितिकी तंत्र जीवमंडल में एक सुनिश्चित क्षेत्र धारण करता है।
  • किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र का समय इकाई के संदर्भ में पर्यवेक्षण किया जाता है।
  • ऊर्जा, जैविक तथा भौतिक संघटकों के मध्य जटिल पारिस्थितिकी अनुक्रियाएं होती हैं, साथ-ही-साथ विभिन्न जीवधारियों में भी पारस्परिक क्रियाएं होती हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र एक खुला तंत्र होता है, जिसमें ऊर्जा तथा पदार्थों का सतत् निवेश तथा उससे बहिर्गमन होता रहता है।
  • जब तक पारिस्थितिकी तंत्र के एक या अधिक नियंत्रक कारकों में अव्यवस्था नहीं होती, पारिस्थितिकी तंत्र अपेक्षाकृत स्थिर समस्थिति में होता है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संसाधन होते हैं (अर्थात् यह प्राकृतिक संसाधनों का प्रतिनिधित्व करता है)।

पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह | Paristhitik Tantra Mein Urja Ka Prabhav Hota Hai

जैसा की हम सभी जानते है कि पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) में ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सूर्य है। सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सौर ऊर्जा कहा जाता है। पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह केवल एक ही दिशा में होता है। तो आइये पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा के प्रवाह को सूर्य→उत्पादक→उपभोक्ता→अपघटक के बीच समझते है।

  • प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा पेड़-पौधे, सूर्य से प्राप्त सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित कर देते है और यह रासायनिक ऊर्जा भोजन के रूप में पेड़-पौधों के ऊतकों में इकठ्ठा (जमा) हो जाती है।
  • प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी) जब इन पेड़-पौधों को भोजन के रूप में इस्तेमाल करते है तो इन पेड़-पौधों में इकठ्ठा हुई ऊर्जा प्राथमिक उपभोक्ताओं में स्थानांतरित हो जाती है। पेड़-पौधों से प्राप्त ऊर्जा का कुछ भाग प्राथमिक उपभोक्ताओं के श्वसन क्रिया के कारण ऊष्मा में रूपांतरित होकर वायुमंडल में चला जाता है, शेष बची हुई ऊर्जा इनकी वृद्धि और विकास में काम आती है।
  • इसी क्रम में ऊर्जा भोजन के रूप में प्राथमिक उपभोक्ता से द्वितीयक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ता से तृतीयक उपभोक्ता में पहुँच जाती है।
  • आखिरी कड़ी में मरे हुए पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं में इकठ्ठा (जमा) हुई ऊर्जा को अपघटक प्राप्त करते है, इनके द्वारा भी श्वसन क्रिया के कारण ऊर्जा का कुछ भाग ऊष्मा के रूप में वायुमंडल में लौट जाता है।

इस प्रकार से आपने समझा कि कोई भी जीव या प्राणी भोजन द्वारा प्राप्त पूर्ण ऊर्जा को अपने में एकत्रित नहीं कर सकता। वास्तव में, जब एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में ऊर्जा स्थानांतरित होती है तो उसका अधिकांश भाग वायुमंडल में चला जाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना एवं कार्य| Paristhitik Tantra Ki Sanrachna

परिस्थितिकी तंत्र जलीय हो या स्थलीय उसकी संरचना दो घटकों से मिलकर होती है।

  • जैविक घटक
  • अजैविक घटक

जैविक घटक । Biotic Components in Hindi

यह तीन प्रकार के होते हैं।

  • उत्पादन
  • उपभोक्ता
  • विघटक

अजैविक घटक । Abiotic Components in Hindi

यह भी तीन प्रकार के होते हैं।

  • जलवायु
  • कार्बनिक पदार्थ
  • अकार्बनिक पदार्थ

पारिस्थितिकी तंत्र के घटकों का वर्णन, पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा क्या है, पारिस्थितिकी तंत्र के जैविक और अजैविक घटकों | Paristhitik Tantra Ke Ghatak, Paristhitik Tantra Se Aap Kya Samajhte Hain

पारिस्थितिक तंत्र के 2 मुख्य भाग होते हैं जीवित जीवधारी तथा निर्जीव वातावरण। समस्त जीवधारी परिस्थितिक तंत्र का जैविक घटक तथा निर्जीव वातावरण इसका अजैविक घटक होता है।

अजैव घटक । Abiotic Components in hindi

ओडम 1971 के किसी पारिस्थितिक तंत्र के अजैविक घटकों को तीन भागों में बांटा है।

  1. अकार्बनिक पोषक
  2. कार्बनिक योगिक
  3. जलवायु या भौतिक कारक 

1. अकार्बनिक पोषक

इनमें जल कैलशियम पोटैशियम मैग्निशियम जैसे खनिज फास्फोरस नाइट्रोजन सल्फर जैसे लग्न तथा ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड नाइट्रोजन जैसे-जैसे शामिल है यह सब हरे पौधे के पोषक तत्व अथवा कच्ची सामग्री है। 

2. कार्बनिक यौगिक 

इसमें मृत पौधों व जंतुओं से उत्पन्न प्रोटीन शर्करा रिपीट जैसे कार्बनिक यौगिक और इनके अपघटन से उत्पन्न माध्यमिक या अंतिम उत्पाद जैसे यूरिया तथा ह्यूमस सम्मिलित है।

3. लवायु कारक या भौतिक कारक 

वातावरण के भौतिक भाग में जलवायु कारक उदाहरण तथा वायु नमी तथा प्रकाश आते हैं सौर ऊर्जा मुख्य भौतिक घटक है।

इन घटकों के अंतर्गत मिट्टी, जल, वर्षा, तापमान, भवन, स्थलाकृति, कार्बन,डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कैल्शियम, फास्फोरस, एवं अन्य अनेक रासायनिक तत्व सम्मिलित है। ये अजैव घटक किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले जीव जंतुओं एवं वनस्पति की विभिन्न प्रजातियों को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए स्थलमंडल पर पाए जाने वाले जीव जलमंडल के जीवन से भिन्नता रखते हैं।

ठीक इसी प्रकार स्थलमंडल के भिन्न-भिन्न भागो में पाए जाने वाले पेड़ पौधे एवं जीव जंतुओं की प्रजातियों में भी भौतिक पर्यावरण के अजैव घटकों के प्रभाव के फलस्वरूप भिन्नता पाई जाती है। उदाहरण के लिए सदाबहार वनस्पतियां और शेरों की विषुवतीय प्रदेशों में मिलते हैं इस प्रकार कहा जा सकता है कि अजैव घटकों में जलवायु का महत्वपूर्ण स्थान है जो संपूर्ण परितंत्र को प्रभावित करती है तथा उनमें अनेक परिवर्तन लाती हैं।

  1. ताप (Temperature),
  2. प्रकाश (Light)
  3. जल (Water),
  4. आर्द्रता (Humidity),
  5. मृदा या मिट्टी (Soil),
  6. दाब (Pressure)।

1. ताप (Temperature) – 

सभी जीवधारियों को गर्मी सूर्य के प्रकाश के विकिरण द्वारा प्राप्त होती है और इसी ऊर्जा से सभी जैविक क्रियाएँ चलती हैं। ताप वास्तव में वातावरण की ऊष्मा को नापने का पैमाना है। विभिन्न भागों में ताप अलग-अलग होता है। इस प्रकार कुछ रेगिस्तानी क्षेत्रों में दिन में 85°C तक का उच्चतम तापमान है, पृथ्वी की सतह के धरातल से प्रत्येक 150 मीटर की ऊँचाई पर लगभग 1°C के हिसाब से तापमान कम होता जाता है। तापक्रम ठण्डे समुद्रों में 3°C स्वच्छ जलों में 0°C तथा साइबेरिया के भू-भागों में 7°C से भी नीचे चला जाता है।

2. प्रकाश (Light) – 

सूर्य प्रकाश का मुख्य स्रोत है, वास्तव में प्रकाश द्वारा संश्लेषित ऊर्जा ही सभी जीवधारियों के जीवन का मूलभूत आधार हैकॉस्मिक किरणें (Cos mic rays), गामा व X-किरणों (Gama and X-rays), अल्ट्रा-वाइलेट (पराबैंगनी इन्फ्रारेड किरणें, ताप तरंगें (Heat-waves) विद्युत चुम्बकीय तरंगें आदि भी सूर्य से पृथ्वी पर निरन्तर विकिरित होती रहती हैं। 

प्रकाश के प्रभाव (Effect of Light)

  1. प्रकाश का उपापचय पर प्रभाव, 
  2. प्रकाश का जन्तुओं के रंजन और शरीर रचना पर प्रभाव, 
  3. प्रकाश का वृद्धि और परिवर्तन पर प्रभाव
  4. प्रकाश का प्रचलन पर प्रभाव, 
  5. प्रकाश का उपापचय (Metabolismपर प्रभाव, 
  6. दृष्टि (Vision) पर प्रकाश का प्रभाव। 

3. जल (Water)-

जल सीधे या परोक्ष रूप में समस्त जैव-भूमण्डल (Biosphere) के जीवधारियों के लिए आवश्यक है। पृथ्वी का लगभग 73 प्रतिशत भाग जल से ढँका हुआ है। समुद्रों के समस्त भागों और गहराइयों में कोई न कोई जीवधारियों का समूह अवश्य पाया जाता है। पृथ्वी के स्वच्छ जल के स्रोत, जिनमें पोखर, झीलें, नदियाँ आदि सम्मिलित हैं। प्रत्येक जीवधारियों को जल की आवश्यकता होती है। स्थल पर पौधों का वितरण प्रत्यक्ष रूप से जल पर निर्भर होता है विशेष प्रकार के वनस्पति एवं जन्तुओं के वितरण में भी अप्रत्यक्ष रूप से जल की उपलब्धता का महत्व होता है।

जल के प्रभाव (Effect of Water) (i) जल जीवधारियों को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में जल की कमी के कारण जन्तुओं और पौधों में जल संरक्षण (Water-conservation) के लिए अनेकों अनुकूलन पाये जाती है। (ii) कुछ स्थलीय जन्तु पर्याप्त जल में ही प्रजनन परिवर्धन और वृद्धि करते हैं। 

4. आर्द्रता (Humidity)- 

यह दो प्रकार से दर्शाया जाता है 

1. सम्पूर्ण आर्द्रता (Absolute humidity)– एक निश्चित स्थान पर वायु की प्रति इकाई में उपस्थित जल की मात्रा का भार सम्पूर्ण आर्द्रता (Absolute humidity) कहलाता है। 

2. सापेक्ष आर्द्रता (Relative humidity) – सापेक्ष आर्द्रता को समान ताप और दाब पर संतृप्त बिन्दु की आर्द्रता की तुलना में किसी स्थान या मौसम में, वायु में जल वाष्प की वास्तविक प्रतिशत मात्रा दर्शाती है

5. मृदा या मिट्टी (Soil) – 

साधारणतः पृथ्वी की ऊपरी सतह, जिसमें अधिकांश वनस्पतियाँ और जन्तु स्थायी रूप से निवास करते हैं उसे मृदा या मिट्टी कहते हैं। लेकिन ऊपरी परत के अतिरिक्त मिट्टी के निर्माण में मौसम कार्बनिक पदार्थों और जीवधारियों का भी योगदान है।

6. दाब (Pressure) – 

वायुमण्डल में बढ़ती हुई ऊँचाइयों के साथ-साथ वायुमण्डलीय दाब घटता है और तल में बढ़ती हुई गहइराई के कारण दाब बढ़ता है। वायु दाब परिवर्तनों के प्रभाव- ऊँचाई के साथ दाब में होने वाली कमियाँ होती है। पौधों तथा असमपाती प्राणियों का पर्वतों पर वितरण कम दाब से नहीं, बल्कि अन्य प्रतिकूल कारकों द्वारा सीमित है।

जैव घटक । Biotic Components in Hindi

जैव घटकों के अंतर्गत सभी प्रकार के जीव जंतु रोगाणु तथा वनस्पतियां सम्मिलित होती है।

जैव घटक के 3 वर्ग हैं।

  1. उत्पादक
  2. उपभोक्ता
  3. विघटक

1. उत्पादक

ऐसे सभी जीव जो भौतिक पर्यावरण से अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं, उत्पादक वर्ग के अंतर्गत आते हैं। इन्हें स्वपोषी जीव भी कहा जाता है। पेड़ पौधे ऐसे सभी प्रकार की वनस्पतियां प्राथमिक उत्पादक कहे जाते हैं क्योंकि यह सौर्य ऊर्जा के उपयोग से अजय पदार्थों को जय पदार्थों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण के द्वारा अपना स्वयं तैयार करते हैं। प्रकाश संश्लेषण के अंतर्गत पेड़ पौधे वायु मंडल से कार्बन डाइऑक्साइड तथा मिट्टी से से खनिज एवं जल लेकर सौर ऊर्जा की सहायता से जय पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया पेड़ पौधों की पत्तियों में विद्यमान क्लोरोफिल नामक हरे वर्णक के द्वारा ही संभव हो पाती है। महासागरीय जल में पैदा होने वाले पादप प्लवक भी प्राथमिक उत्पाद को की श्रेणी में आते हैं क्योंकि यह भी सौर ऊर्जा के उपयोग से अपना भोजन स्वयम बनाते हैं।

2. उपभोक्ता

वे समस्त जीव जो अपने भोजन के लिए दूसरे जीवो पर निर्भर करते हैं। उपभोक्ता या परपोषी हैं। उपभोक्ता शाकाहारी मांसाहारी तथा सर्वाहारी मानव होते हैं इसके अतिरिक्त विघटक भी उपभोक्ता में सम्मिलित है अर्थात इसमें प्राणी पशु पक्षी जीवाणु आदि सम्मिलित है।

इनमें कौन हरीम नहीं होता है यह अपना आहार हरे पौधों से लेते हैं इन्हें उपभोक्ता कहते हैं इनमें जंतु कवक तथा जीवाणु सम्मिलित हैं इनको निम्नलिखित पोषण विधियों में विभक्त किया जाता है।

(A) शाकाहारी 

ऐसे जंतु तथा परजीवी पौधों को अपना खाद पदार्थ सीधी में प्रकाश संश्लेषण पौधों से प्राप्त करते हैं इन्हें शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता कहते हैं उदाहरण के लिए टिड्डे तिलिया मधुमक्खियां तोता खरगोश बकरी गाय हिरन आते आते इस संवर्ग में आते हैं।

(B) मांसाहारी 

यह ऐसे जंतु है जो शाकाहारी जंतु को खाते हैं इन्हें द्वितीयक उपभोक्ता भी कहते हैं उदाहरण ब्रिंग व झिंगुर छोटी मछलियां मेंढक छिपकली सांप तथा छोटे पक्षी जैसे चिड़िया कौवा कठफोड़वा वा मैना आदि।

(C) सर्वोच्च मांसाहारी 

यह ऐसे जंतु हैं जिन को दूसरे जंतु मारकर नहीं खाते इन्हें तृतीयक उपभोक्ता कहते हैं उदाहरण शार्क मछलियां मगरमच्छ उल्लू चील तथा बाजा आदि।

यह जीव परपोषी होते हैं पृथ्वी पर पाए जाने वाले उपभोक्ताओं को 3 वर्गों में रखा जा सकता है।

  • (क) वे सभी जीव जो अपना भोजन केवल पेड़-पौधों या घर से प्राप्त करते हैं शाकाहारी उपभोक्ता या प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं खरगोश एवं हिरण प्राथमिक या शाकाहारी उपभोक्ता ही हैं।
  • (ख) वे जीव अथवा उपभोक्ता जो दूसरे जीवो को अपना भोजन बनाते हैं मांसाहारी उपभोक्ता या गॉड उपभोक्ता कहे जाते हैं शेर एवं चीता मांसाहारी उपभोक्ता है क्योंकि यह अन्य जीव-जंतुओं को मार कर ही अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
  • (ग) मनुष्य सर्वाहारी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है क्योंकि वह जीव जंतुओं तथा पेड़ पौधों दोनों से ही अपना भोजन प्राप्त करता है।

3. विघटक

जीवाणु फफूंदी दीमक आदि जो सड़े गले पेड़ पौधों एवं मृत जीवो के ऊतको का विघटन कर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। विघटक उपभोक्ता कहलाते हैं।

इसी प्रकार अजैव एवं जैव घटकों के मध्य पदार्थों के आदान-प्रदान का एक क्रम बना रहता है। अजैव घटक पेड़ पौधों को आवश्यकता पोषक टैटू प्रदान करते हैं। उत्पादक पेड़ पौधे इन पोषक तत्वों को लेकर सौर ऊर्जा के उपयोग से अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। क्योंकि जीव जंतु अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते अतः वह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में इन पेड़ पौधों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। अपना भोजन प्राप्त करने की क्रिया में विघटन जीव सड़े गले पेड़ पौधों तथा मृत जीव जंतुओं के ऊतकों पर क्रिया करके उन्हें अजैव पदार्थों में परिवर्तित कर देते हैं। ये अजैव पदार्थ पुनः मिट्टी में मिल जाते हैं जिन्हें पेड़ पौधे एवं वनस्पतियां ग्रहण कर लेती हैं और इस प्रकार प्रत्येक परिस्थितिक तंत्र के अजय पदार्थों का आदान-प्रदान होता रहता है। तथा या चक्र पूर्ण होता है और परिस्थितिकी तंत्र में उर्जा प्रवाह होता रहता है।

प्राकृतिक परितंत्र की विशेषताएं । Natural Ecosystem Features in Hindi

प्राकृतिक परितंत्र की दो प्रमुख विशेषताएं हैं।

(1) मानव निर्मित परितंत्र
(2) प्राकृतिक परितंत्र

प्राकृतिक परितंत्र – वे परितंत्र जो पूर्ण रूप से सौर विकिरण पर निर्भर रहते प्राकृतिक परितंत्र कहलाते हैं। जैसे- जंगल, सागर, मरुस्थल, झील, नदियां आदि।

मानव निर्मित परितंत्र – सौर ऊर्जा पर निर्भर वह परितंत्र जो मानव द्वारा निर्मित किए गए हैं उन्हें मानव निर्मित परितंत्र कहते हैं। जैसे- खेत, कृतिम और तालाब।

जीवाश्म ईंधन पर निर्भर परितंत्र जैसे – नगरीय परितंत्र औधोगिक परितंत्र।

दोस्तों आज हमने आपको पारिस्थितिकी तंत्र क्या है? । Ecosystem in Hindi के बारे में और इसके साथ-साथ परिस्थितिकी तंत्र की संरचना, परिस्थितिकी तंत्र के प्रकार, परिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएं, परिस्थितिकी तंत्र के घटक के बारे मे बताया, आशा करता हूँ आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आया होगा और आपको इससे बहुत कुछ सिखने को भी मिला होगा। तो दोस्तों मुझे अपनी राय कमेंट करके बताया ताकि मुझे और अच्छे अच्छे आर्टिकल लिखने का सौभग्य प्राप्त हो।मुझे आपके कमेंट का इंतजार रहेगा।

वन का पारिस्थितिक तंत्र | Van Paristhitik Tantra

वन का पारिस्थितिक तंत्र स्वयं में परिपूर्ण एवं स्वतंत्र नियामक पारिस्थितिक तंत्र होता है वन का पारिस्थितिक तंत्र दो प्रमुख घटकों से मिलकर बना होता है 

(A) अजैविक घटक

एक वन के पारिस्थितिक तंत्र में दो प्रकार के जैविक घटक होते हैं एक अकार्बनिक जैविक घटक दूसरा कार्बनिक 

वन में उपस्थित हरे पौधे इन अकार्बनिक एवं कार्बनिक पदार्थों का उपयोग करके प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपने भोजन का संश्लेषण करते हैं ।

(B) जैविक घटक 

इसके अंतर्गत में ना प्रकार के जीव धारियों पेड़ पौधे सम्मिलित किए गए हैं 

  1. उत्पादक
  2. उपभोक्ता 
  3. अपघटक

1. उत्पादक 

वनों में पाए जाने वाले समस्त हरे पौधे जो प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा पूर्ण हरीम के सहायता से सौर ऊर्जा जल एवं CO2 का उपयोग करके अपना भोजन स्वयं बनाते हैं जिन्हें उत्पादक कहते हैं क्योंकि 1 के प्रकार के होते हैं अतः प्रत्येक प्रकार के वन में अलग-अलग पौधे पाए जाते हैं वनों में पाए जाने वाले सामान्य पौधे सैगोन, साल, पलाश, देवदार, पाइनस आदि हैं।

2. उपभोक्ता 

उनके अंतर्गत वनों के ऐसे जीवधारी सम्मिलित किए जाते हैं जो अपने पोषण हेतु वन्यजीवों या पेड़ पौधों पर आश्रित होते हैं वनों में तीन प्रकार के उपभोक्ता पाए जाते हैं।

प्राथमिक उपभोक्ता हाथी नीलगाय लोमड़ी बंदर गिलहरी हिरण एवं शाकाहारी पक्षी वन के प्रमुख प्राथमिक उपभोक्ता हैं यह भोजन हेतु पेड़ पौधों पर आश्रित होते हैं।

द्वितीयक उपभोक्ता इनके अंतर्गत वनों में उपस्थित ऐसे जीव जंतु आते हैं जो कि अपने पोषण के लिए प्राथमिक उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं तथा शिकार करके उनके मांस को खाकर अपना पोषण करते हैं उदाहरण गिरगिट छिपकली सांप कौवा सियार भेड़िया नेवला आदि।

तृतीयक उपभोक्ता इनके अंदर गधे से जंतुओं को सम्मिलित किया गया है जो अपने भोजन हेतु द्वितीयक उपभोक्ता ऊपर आश्रित होते हैं इनका शिकार करके अपना भरण-पोषण करते हैं इन्हें सर्वोच्च मांसाहारी जंतु भी कहते हैं उदाहरण बाघ शेर चीता आदि।

3. अपघटक 

इन के अंतर्गत ऑन सूक्ष्म जीवों को सम्मिलित किया गया है जो उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के मृत्युंजय गाड़ी शारीरिक पदार्थों एवं शरीर का गठन करके उन्हें अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित करके पुनः मृदा में वापस मिला देते हैं इन्हें अपघटक कहते हैं उदाहरण के लिए जीवाणु व कवक।

जलीय पारिस्थितिकी तंत्र, तालाब किस प्रकार का पारिस्थितिक तंत्र है | Talab Ka Paristhitik Tantra

इसके अंतर्गत जल में पाए जाने वाले परिस्थिति तंत्र को सम्मिलित किया गया है।

जैसे तालाब झील के पारिस्थितिक तंत्र नदी का पारिस्थितिक तंत्र समुद्र का पारिस्थितिक तंत्र या समुद्र तटीय पारिस्थितिक तंत्र।

तालाब झील का पारिस्थितिक तंत्र 

एक तालाब झील अपने आप में पूर्ण एवं एक स्वतः नियामक पारिस्थितिक तंत्र होता है यह पारिस्थितिक तंत्र दोनों आवश्यक घटको अजैविक घटक एवं जैविक घटक उत्पादक उपभोक्ता एवं अब घटक से मिलकर बना होता है।

अजैविक घटक तालाब के पारिस्थितिक तंत्र में दो प्रकार के अजैविक घटक पाए जाते हैं।

अकार्बनिक घटक उदाहरण जल कार्बन डाइऑक्साइड ऑक्सीजन कैल्शियम नाइट्रोजन एवं फास्फोरस के यौगिक। कार्बनिक घटक उदाहरण – एमिनो अम्ल

जैविक घटक तालाब झील में निम्नलिखित जैविक घटक होते हैं 

उत्पादक तलाब में कई प्रकार के उत्पादक पेड़ पौधे पाए जाते हैं जो कि अपना भोजन स्वयं बनाते हैं।

उदाहरण 

  1. तैरने वाले सूक्ष्म पौधे वॉलवॉक्स अनाबिका आदि।
  2. जलमग्न पौधे जैसे वेलिसनेरिया।
  3. स्वतंत्रप्लावी पादप सिंघाड़ा विस्टीरिया आदि।
  4. बड़े पत्ते वाले पाउडर कमल कुमुदिनी आदि।

उपभोक्ता यह तालाब के जंतु समूह को प्रदर्शित करते हैं इन्हें शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता मांसाहारी यह द्वितीय उपभोक्ता तथा तृतीय उपभोक्ता में विभक्त किया जा सकता है।

प्राथमिक उपभोक्ता यह पौधों या उनके अवशेषों का सेवन करते हैं। प्राणी पल्लव आख्या सूक्ष्मा भोक्ता डीजल की लहरों के साथ-साथ सतह पर तैरते हैं उदाहरण युगलीना और कोलेप्स।

द्वितीयक उपभोक्ता यह पानी में पाए जाने वाले छोटे जीव है जो प्राणी रिंकू का भक्षण करते हैं उदाहरण कीट छोटी मछलियां बिटक।

तृतीयक उपभोक्ता इन के अंतर्गत कुछ विशेष बड़ी मछलियां आती है। ये द्वितीयक उपभोक्ताओं को खाती है। उदाहरण – गेम फिश। 

उपघातक – तालाब के ताल पर पेड़-पौधे व् जलीय जिव के अवशेष को अपघटित करने वाले जीव होते है जैसे – मृतजीवी कवक और बैक्टीरियाआदि।

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FAQ | पारिस्थितिक, पारिस्थितिकी तंत्र | Paristhitik, Paristhitik Pyramid

Q1. पारिस्थितिकी तंत्र शब्द किसने दिया

Ans – टैन्सले ने 1902 में न्यू फाइटोलॉजिस्ट की स्थापना की और 1931 तक इसके संपादक के रूप में कार्य किया। इसके अलवा वह ब्रिटेन में इकोलॉजी के विज्ञान के खोजकर्ता थे। सभी जीवित और निर्जीव चीजों (पौधों, जानवरों, जीवों, सूर्य, जल, जलवायु आदि) के बीच के संबंध को इकोसिस्टम कहा जाता है। मान लीजिये भेड़ और शेर के बीच का संबंध; आपने आपको जिन्दा रखने के लिए, शेर भेड़ों को खाता है जिसे इसका प्रभाव उसी क्षेत्र में रहने वाले अन्य जीवों और पौधों पर पड़ता है।

Q2. पारिस्थितिक अनुक्रमण क्या है

Ans – विकासशील पारिस्थितिक तंत्र में मौजूद विभिन्न समुदायों में स्थायी समुदाय वाले पारिस्थितिक तन्त्र की स्थापना होने तक परिवर्तन होता रहता है जो मुख्यतः जैविक कारकों, जल-वायवीय कारकों, मृदीय कारकों तथा अन्य पर्यावरणीय कारकों को क्रियाशीलता  के कारण होता है। यह परिवर्तन तब तक चलता रहता है जब तक कि जीवों का एक ऐसा वर्ग स्थापित नहीं हो  जाता, जो उस क्षेत्र में सफलतापूर्वक रह सके एवं जनन कर सके, इसे जैविक अनुक्रमण वा पारिस्थितिक अनुक्रमण कहते हैं।
अनुक्रमण की क्रिया निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होती हैं

(I) मण्डलीकरण (Colonisation)-  किसी नए क्षेत्र में दूसरे जगहों से प्रवर्धकों जैसे बीज, बीजाणु या प्रजनन सम्बन्धी संरचना के आगमन को स्थानान्तरण कहते हैं, जिसके कारण मण्डलीकरण की प्रक्रिया होती है। यह अनुक्रमण में होने वाली सबसे पहली अवस्था है।

(2) आस्थापन (Ecesis)-  स्थानान्तरण के बाद बीज या बीजाणु अंकुरण कर वृद्धि करते हैं एवं स्वयं को वातावरण के अनकूल बनाते हैं, यह प्रक्रिया आस्थापन कहलाती है। 1

(3) समुच्चयन (Aggregation)- आस्थापन के बाद पौधों में पुष्पन, फल निर्माण एवं बीजों का उत्पादन होता है। ये बीज अंकुरित होकर उसी स्थान पर पौधों की संख्या में वृद्धि करते रहते हैं, जिससे समष्टियों का समुच्चयन होता रहता है।

(4) प्रतिस्पर्धा (Competition)- समुच्चय के फलस्वरूप एक जाति के आबादियों के बीच एवं विभिन्न जातियों के बीच प्रतिस्पर्धा, सीमित संसाधन के विभिन्न घटकों के उपयोग के लिए होने लगती है। जो जीव प्रतिस्पर्धा में सफल नहीं होते हैं, वे धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं।

(5) प्रतिक्रिया (Reaction)- जीवों के समुदाय एवं उसके वास स्थान में मौजूद वातावरणीय कारकों के बीच होने वाली क्रियाओं को प्रतिक्रिया कहा जाता है।

6) स्थायीकरण (Stabilization ) – उपर्युक्त प्रक्रियाओं के कारण होने वाले परिवर्तन से वहाँ पर पूर्व से उपस्थित पौधों का जीवित रहना मुश्किल हो जाता है। अतः वे समाप्त होने लगते हैं एवं उनके स्थान पर नए पौधे आने लगते हैं तथा यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि उस स्थान पर चरम वनस्पति का विकास नहीं हो जाता। अनुक्रमण का अन्त चरम समुदाय का स्थायित्व कायम हो जाने से होता है, जिसे स्थायीकरण कहते हैं ।

Q3. पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते हैं

Ans – जैविक समुदाय और अजैविक घटकों के अंतर्संबंधों से निर्मित संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। वास्तव में  जीव जीवन के लिए आपस में तथा अपने पर्यावरण से जुड़े रहते हैं और मिलकर पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं। पारिस्थिकी तंत्र अथवा परितंत्र का आकार एक छोटे तालाब से लेकर एक विशाल महासागर तक हो सकता है-

पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना का तात्पर्य इस बात से है कि इसके विभिन्न अव्यव आपस में किस प्रकार जुड़े हुए हैं। पारिस्थितिकी तंत्र का मुख्य संरचनात्मक लक्षण जाति रचना तथा स्तर विन्यास है। किसी पारिस्थितिकी तंत्र में जाति रचना वहाँ के पर्यावरण पर निर्भर करती है। उष्णकटिबंधीय प्रचुर वनों में जीवन के अनुकूल परिस्थिति होने के कारण उष्णकटिबंधीय वनों की संरचना में बहुसंख्यक जैविक जातियों को देखा जा सकता है, वहीं मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र अल्प जातियों की संख्या को दर्शाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना का स्तर-विन्यास खाद्य-श्रृंखला तथा उत्पादक एवं उपभोक्ता के भोजी संबंधों के द्वारा निर्धारित होता है।इसके प्रथम स्तर पर उत्पादक पौधे होते हैं जो सूर्य के प्रकाश तथा अजैविक घटकों की मदद से अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं। इसके दूसरे स्तर पर शाकाहारी जीव तथा तृतीय पोषी स्तर पर मांसाहारी जीव होते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना में ऊर्जा का प्रवाह खाद्य श्रृंखला के निम्न स्तर से उच्च स्तर की ओर होता है। सजीवों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्व  जैव-पदार्थ तथा मृदा जैसे अजैविक घटकों में संचित होता है। इन  पोषक तत्त्वों का प्रवाह पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना में चक्रीय रुप से होता रहता है।

पारिस्थितिकी तंत्र के विशेष घटक विशिष्ट संरचना में जुड़कर पारिस्थितिकी तंत्र को स्थायित्व प्रदान करते हैं।

Q4. पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह होता है

Ans – पेड़ों में ऊर्जा सूर्य द्वारा प्रकाश संश्लेषण से उतपन्न होती है। उसके बाद यह अन्य खाद्य श्रृंखला में जाती है। ऊर्जा का प्रवाह दिशाहीन होता है क्योंकि खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा ऊष्मा के रूप में चली जाती है।

Q5. पारिस्थितिकी के जनक कौन है

Ans – अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट को पारिस्थितिकी के जनक कहा जाता है।

भारत में पारिस्थितिकी के जनक के रूप में डॉ. रामदेव मिश्र को जाना जाता है। उन्होंने यूके के लीड्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के तहत अपनी पीएच.डी की थी। और उन्होंने ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अपना शिक्षण और शोध पारिस्थितिकी और वनस्पति विज्ञान विभाग में किया था। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित है। उनके शोध के कारण पौधों की आबादी, उत्पादकता, उष्णकटिबंधीय वन में पोषक चक्रण और घास के मैदान पारिस्थितिकी तंत्र आदि की पर्यावरणीय प्रतिक्रियाओं को लोगो के लिए समझना संभव बना दिया था।



पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी – एक गतिशील दृष्टिकोण

इस पुस्तक को पारिस्थितिकी और पर्यावरण के क्षेत्र में हाल के सभी विकासों के साथ पूरी तरह से अद्यतन किया गया है। हर गुजरते दिन के साथ वैश्विक जलवायु परिवर्तन, कार्बन उत्सर्जन, वनों की कटाई, आर्कटिक और अंटार्कटिक के पिघलने, गर्मी की लहरों, अनियमित मानसून आदि के कारण पर्यावरण और पारिस्थितिकी का विषय महत्व प्राप्त कर रहा है।

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