वर्णमाला किसे कहते हैं | Varnmala Kise Kahate Hain

वर्णमाला किसे कहते हैं उदाहरण सहित | Varnmala in Hindi

वर्णमाला का शाब्दिक अर्थ होता है -वर्णो से बानी माला, जिस प्रकार एक माला को बनाने के लिये मोतियों की आवश्यकता पड़ती है और यही एक-एक मोती मिलकर एक सुन्दर सी माला का निर्माण करती है।  ठीक इसी प्रकार वर्णो के मिलने से एक माला का निर्माण होता है इस नवनिर्मित माला को वर्णमाला कहते है  अर्थात विभिन्न प्रकार के वर्णो को साथ क्रमबद्ध तरीके से लिखना और उनका क्रमबद्ध समूह बनाना ही वर्णमाला कहलाता है। 

वर्णमाला की परिभाषा | Varnmala Ki Paribhasha

वर्णमाला का शाब्दिक अर्थ होता है -वर्णो से बानी माला, जिस प्रकार एक माला को बनाने के लिये मोतियों की आवश्यकता पड़ती है और यही एक-एक मोती मिलकर एक सुन्दर सी माला का निर्माण करती है।  ठीक इसी प्रकार वर्णो के मिलने से एक माला का निर्माण होता है इस नवनिर्मित माला को वर्णमाला कहते है  अर्थात विभिन्न प्रकार के वर्णो को साथ क्रमबद्ध तरीके से लिखना और उनका क्रमबद्ध समूह बनाना ही वर्णमाला कहलाता है। 

वर्णो के सार्थक समूह को वर्णमाला कहते है । इसको इस तरह से भी व्यक्त कर सकते है –

  • किसी भी भाषा के समस्त वर्णो के समूह को वर्णमाला कहते है । 
  • वर्णो के क्रमबद्ध समुदाय को वर्णमाला कहते है । 
  • वर्णों के वयवस्थित एवं क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते है । 
  • हिन्दी भाषा में वर्णो के समूह को वर्णमाला कहते है । 
  • भाषा विशेष में प्रयुक्त होने वाले वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते है । 

प्रत्येक भाषा के अपने अलग वर्ण और वर्णमाला होते है । जैसे-

  • हिन्दी भाषा में कुल वर्णो की संख्या- 52, अ,इ, उ,ऋ,ए,च, झ,…….. आदि 
  • अंग्रेजी में कुल वर्णो की संख्या -26 

हिन्दी वर्णमाला उच्चारण

हिंदी भाषा का जन्म संस्कृत भाषा से हुआ। हिंदी भाषा को देवनागरी भाषा के नाम से भी जाना जाता हैं।

उदाहरण :-

अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न। प फ ब भ म य र ल व श ष स ह को ‘देवनागरी वर्णमाला’ कहते हैं।

वर्णमाला’ को अंग्रेजी में एल्फाबेट (Alphabet) कहते हैं। अरबी, फ़ारसी, कुर्दी और मध्य पूर्व की अन्य भाषाओं में इसे ‘अलिफ़-बेई’ या सिर्फ ‘अलिफ़-बे’ कहते हैं।

वर्णमाला कितने होते हैं | Varnmala of Hindi, Varnmala Ke Bhed

हिंदी वर्णमाला के समस्त वर्णों को व्याकरण में दो भागों में बाँटा गया हैं।

  • स्वर
  • व्यंजन

1. स्वर किसे कहते हैं

जिन वर्णों को स्वतन्त्र रूप से बोला जा सके उसे स्वर कहते हैं।

जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस, कण्ठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती है उन्हें ‘स्वर’ कहा जाता है।

स्वर के प्रकार

स्वर के दो प्रकार होते हैं।

  • मूल स्वर
  • संयुक्त स्वर

(अ). मूल स्वर :-
अ, आ, इ ई, उ, ऊ, ए, ओ

मूल स्वर के प्रकार

मूल स्वर के तीन प्रकार होते हैं।

  • ह्रस्व स्वर
  • दीर्घ स्वर
  • प्लुत स्वर

(i). ह्रस्व स्वर :- जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहाँ जाता हैं।

ह्रस्व स्वर चार होते हैं।

जैसे :- अ, आ, उ, ऋ

(ii). दीर्घ स्वर :- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में ह्रस्व से भी दुगुना समय लगता हैं दीर्घ स्वर कहलाते हैं।

दीर्घ स्वर सात होते हैं।

जैसे :- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ

दीर्घ स्वर दो शब्दों के मेल से बनते हैं।

जैसे :-

  • अ + आ = आ
  • इ + ई = ई
  • उ + ऊ = ऊ
  • अ + ई = ए
  • अ + ए = ऐ
  • अ + उ = ओ
  • अ + ओ = औ

(iii). प्लुत स्वर :- ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में तिगुना समय लगे प्लुत स्वर कहलाते हैं।

इसका चिह्न (ऽ) है। इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय किया जाता हैं।

(ब). संयुक्त स्वर :-
अ + ए = ऐ
अ + ओ = औ

2. व्यंजन किसे कहते हैं

जिन वर्णों को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पढ़ती है उन्हें व्यंजन कहते हैं।

दूसरे शब्दो में, व्यंजन उन वर्णों को कहाँ जाता हैं, जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती हैं।

जैसे :- क, ख, ग, च, छ, त, थ, द, भ, म इत्यादि।

जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस कण्ठ, तालु आदि स्थानों से रुककर निकलती है उन्हें ‘व्यंजन’ कहा जाता है।

जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं उन्हें व्यंजन कहते हैं। हर व्यंजन के उच्चारण में अ स्वर लगा होता है। अ के बिना व्यंजन का उच्चारण नहीं हो सकता। वर्णमाला में कुल 45 व्यंजन होते हैं।

  • क, ख, ग, घ, ङ (क़, ख़, ग़)
  • च, छ, ज, झ, ञ (ज़)
  • ट, ठ, ड, ढ, ण, (ड़, ढ़)
  • त, थ, द, ध, न
  • प, फ, ब, भ, म (फ़)
  • य, र, ल, व
  • श, श़, ष, स, ह
  • संयुक्त व्यंजन – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र

व्यंजनों के प्रकार

व्यंजनों के तीन प्रकार होते हैं।

  • स्पर्श व्यंजन
  • अन्तःस्थ व्यंजन
  • उष्म व्यंजन

(अ). स्पर्श व्यंजन :- स्पर्श का अर्थ छूना होता हैं। जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुँह के किसी भाग जैसे कण्ठ, तालु, मूर्धा, दाँत, अथवा होठ का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है।

दूसरे शब्दो में, ये कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त और ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते हैं। इसी से इन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।
इन्हें हम ‘वर्गीय व्यंजन’ भी कहते है। क्योंकि ये उच्चारण-स्थान की अलग-अलग एकता लिए हुए वर्गों में विभक्त हैं।

स्पर्श व्यंजन 5 प्रकार के होते हैं।

(i). क वर्ग :- क ख ग घ ङ ये कण्ठ का स्पर्श करते है।

(ii). च वर्ग :- च छ ज झ ञ ये तालु का स्पर्श करते है।

(iii). ट वर्ग :- ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़) ये मूर्धा का स्पर्श करते है।

(iv). त वर्ग :- त थ द ध न ये दाँतो का स्पर्श करते है।

(v). प वर्ग :- प फ ब भ म ये होठों का स्पर्श करते है।

अंतस्थ :- य , र , ल , व

उष्म :- श , श़, ष , स , ह

संयुक्त व्यंजन :- क्ष , त्र , ज्ञ , श्र

‘क’ से विसर्ग ( : ) तक सभी वर्ण व्यंजन हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में ‘अ’ की ध्वनि छिपी रहती है। ‘अ’ के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं।

जैसे :-

  • ख् + अ = ख
  • प् + अ = प

व्यंजन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में भीतर से आती हुई वायु मुख में कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में, बाधित होती है। स्वरवर्ण स्वतंत्र और व्यंजनवर्ण स्वर पर आश्रित है। हिन्दी में व्यंजनवर्णो की संख्या 33 है।

(ब). अन्तःस्थ व्यंजन :- ‘अन्तः’ का अर्थ “भीतर” होता हैं। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते हैं।

  • अन्तः = मध्य/बीच,
  • स्थ = स्थित।

इन व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का होता है। उच्चारण के समय जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श नहीं करती।

ये व्यंजन चार होते हैं – य, र, ल, व

इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओठों के परस्पर सटाने से होता है, किन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारों अन्तःस्थ व्यंजन ‘अर्द्धस्वर’ कहलाते हैं।

(स). उष्म व्यंजन :- उष्म का अर्थ होता है- गर्म। जिन वर्णो के उच्चारण के समय हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे उन्हें उष्म व्यंजन कहते है।

ऊष्म = गर्म।

इन व्यंजनों के उच्चारण के समय वायु मुख से रगड़ खाकर ऊष्मा पैदा करती है यानी उच्चारण के समय मुख से गर्म हवा निकलती है।

उष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगड़ या घर्षण से उत्पत्र उष्म वायु से होता हैं।

ये भी चार व्यंजन होते है

जनों का उच्चारण करते समय हवा मुख के अलग-अलग भागों से टकराती है। उच्चारण के अंगों के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार हैं।

(i). कंठ्य (गले से) :- क, ख, ग, घ, ङ

(ii). तालव्य (कठोर तालु से) :- च, छ, ज, झ, ञ, य, श

(iii). मूर्धन्य (कठोर तालु के अगले भाग से) :- ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, ष

(iv). दंत्य (दाँतों से) :- त, थ, द, ध, न

(v). वर्त्सय (दाँतों के मूल से) :- स, ज, र, ल

(vi). ओष्ठय (दोनों होंठों से) :- प, फ, ब, भ, म

(vii). दंतौष्ठय (निचले होंठ व ऊपरी दाँतों से) :- व, फ

(viii). स्वर यंत्र से :- ह

श्वास (प्राण-वायु) की मात्रा के आधार पर वर्ण-भेद

उच्चारण में वायुप्रक्षेप की दृष्टि से व्यंजनों के दो भेद हैं।

  • अल्पप्राण
  • महाप्राण

(i). अल्पप्राण :- जिनके उच्चारण में श्वास पुरव से अल्प मात्रा में निकले और जिनमें ‘हकार’ जैसी ध्वनि नहीं होती, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं।

सरल शब्दों में, जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की मात्रा कम होती है, वे अल्पप्राण कहलाते हैं।

प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण व्यंजन हैं।

जैसे :-

क, ग, ङ; ज, ञ; ट, ड, ण; त, द, न; प, ब, म,। अन्तःस्थ (य, र, ल, व ) भी अल्पप्राण ही हैं।

(ii). महाप्राण :- जिनके उच्चारण में ‘हकार’-जैसी ध्वनि विशेषरूप से रहती है और श्वास अधिक मात्रा में निकलती हैं। उन्हें महाप्राण कहते हैं।

सरल शब्दों में, जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की मात्रा अधिक होती है, वे महाप्राण कहलाते हैं।

प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं।

जैसे :- ख, घ; छ, झ; ठ, ढ; थ, ध; फ, भ और श, ष, स, ह।

संयुक्त व्यंजन :- जो व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों के मेल से बनते हैं, वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।

ये संख्या में चार हैं।

(i). क् + ष + अ = क्ष (रक्षक, भक्षक, क्षोभ, क्षय)

(ii). त् + र् + अ = त्र (पत्रिका, त्राण, सर्वत्र, त्रिकोण)

(iii). ज् + ञ + अ = ज्ञ (सर्वज्ञ, ज्ञाता, विज्ञान, विज्ञापन)

(iv). श् + र् + अ = श्र (श्रीमती, श्रम, परिश्रम, श्रवण)

संयुक्त व्यंजन में पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।

द्वित्व व्यंजन :- जब एक व्यंजन का अपने समरूप व्यंजन से मेल होता है, तब वह द्वित्व व्यंजन कहलाता हैं।

जैसे :-

  • क् + क = पक्का
  • च् + च = कच्चा
  • म् + म = चम्मच
  • त् + त = पत्ता

द्वित्व व्यंजन में भी पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।

संयुक्ताक्षर :- जब एक स्वर रहित व्यंजन अन्य स्वर सहित व्यंजन से मिलता है, तब वह संयुक्ताक्षर कहलाता हैं।

जैसे :-

  • क् + त = क्त = संयुक्त
  • स् + थ = स्थ = स्थान
  • स् + व = स्व = स्वाद
  • द् + ध = द्ध = शुद्ध

प्रत्येक वर्णमाला में दो प्रकार के वर्ण होते हैं स्वर वर्ण तथा व्यंजन वर्ण। व्यंजनों के साथ स्वर लगाने के भिन्न तरीक़ों के आधार पर वर्णमालाओं को तीन वर्गों में बांटा जाता हैं।

1. रूढ़ी वर्णमाला :- यूनानी वर्णमाला जिसमें स्वर भिन्न अक्षरों के साथ ही लगते हैं।

जैसे कि ‘पेमिर’ शब्द को ‘πεμιρ’ लिखा जाता हैं। (जिसमें ε और ι के स्वर वर्ण स्पष्ट रूप से जोड़ने होते हैं)

2. आबूगिदा :- देवनागरी जिसमें मात्रा के चिह्नों के जरिये व्यंजनों के साथ स्वर जोड़े जाते हैं।

मसलन ‘पेमिर’ को ‘प​एमइर’ नहीं लिखते बल्कि ‘प’ के साथ चिह्न लगाकर उसे ‘पे’ और ‘म’ के साथ चिह्न लगाकर उसे ‘मि’ कर देते हैं। इन मात्रा चिह्नों को अंग्रेज़ी में ‘डायाक्रिटिक’ (Diacritic) कहा जाता हैं।

3. अबजद :- फ़ोनीशियाई वर्णमाला जिसमें व्यंजनों के साथ स्वरों के न तो वर्ण लगते हैं और न ही मात्रा चिह्न बल्कि पढ़ने वाले को सन्दर्भ देखकर अंदाजा लगाना होता है कि कौन से स्वर इस्तेमाल करें।

हिंदी की वर्णमाला | Hindi Varnmala Letters

हिंदी भाषा विश्व की समस्त भाषाओं में सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है, जिसे भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा का दर्जा हासिल है। विश्व की प्रत्येक भाषा की तरह ही हिंदी भाषा की सबसे सुक्ष्म इकाई वर्ण (Latter) होता है, जिसे एक क्रमबद्ध और व्यवस्थित रूप में लिखा जाता है।

वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला (Alphabet) कहते हैं। मानक हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabet) में 44 वर्णों को शामिल किया गया है, जिसमें 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं।

हिंदी वर्णमाला स्वर | Hindi Alphabet Vowel

जिन वर्णों का उच्चारण करने के लिए किसी अन्य वर्ण की आवश्यकता नहीं होती उन्हें स्वर (Hindi Swar) कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में ग्यारह स्वर होते हैं।

हिंदी वर्णमाला स्वर

हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में ग्यारह स्वरों के अतिरिक्त अनुस्वार (अं) और विसर्ग (अ:) नामक दो ध्वनियां और भी होती हैं, जिन्हें अयोगवाह कहते हैं। इन दोनों वर्णों को मानक हिंदी स्वरों में स्थान नहीं दिया गया है।

हिंदी व्याकरण में स्वर एक विस्तृत अध्याय है। यदि आप हिंदी स्वर (Hindi Swar) का विस्तृत अध्ययन करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए।

हिंदी वर्णमाला व्यंजन | Hindi Alphabet Consonant

जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता हो उन्हें व्यंजन (Hindi Vyanjan) कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में 33 व्यंजन होते हैं। व्यंजन वर्णों का उच्चारण बिना स्वरों की सहायता के संभव नहीं है, अर्थात जब किसी व्यंजन में स्वर को मिला दिया जाता है तो वह सम्पूर्ण व्यंजन बनता है। स्वर रहित व्यंजन को लिखते समय उसके नीचे हल् (्) का चिह्न लगाते हैं।

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हिंदी वर्णमाला व्यंजन

हिंदी व्याकरण में व्यंजन एक विस्तृत अध्याय है। यदि आप हिंदी व्यंजन (Hindi Vyanjan) का विस्तृत अध्ययन करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए।

हिन्दी वर्णमाला का इतिहास | Hindi Mein Varnmala

आधुनिक हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी गई है, जो संस्कृत के दो शब्दों से बना है: देव, जिसका अर्थ है ‘भगवान’ और नागरी, जिसका अर्थ है ‘शहरी मूल का’। देवनागरी की उत्पत्ति ब्राह्मी लिपि में हुई है। भारतीय उपमहाद्वीप से ब्राह्मी लिपि में लेखन 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है।

ओम – पहली ध्वनि है, जो ओम् की मूल ध्वनि से बनी है। शेष सभी ध्वनियाँ इस ध्वनि के कम या अधिक को बदलकर बनाई गई हैं। इस विषय का विस्तृत वर्णन ‘शिव पुराण’ में उपलब्ध है। तो हिंदी या भारतीय भाषाओं के बारे में यह सिद्ध है कि उनका कोई लेखक नहीं है, लेकिन वे एक ओंकार से उत्पन्न हुए हैं!

भाषा की सबसे छोटी इकाई जिसे टुकड़ों में तोड़ा नहीं जा सकता, अक्षर कहलाती है। शब्दों और वाक्यों के मेल से शब्दों का निर्माण होता है।

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FAQ | वर्णमाला | Varnmala

Q1. वर्णमाला हिंदी में

Ans – किसी भी भाषा में वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, किसी एक भाषा या अनेक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त मानक प्रतीकों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला कहते हैं।

जैसे :- सीता, गीता, राम, श्याम, टेबल, कुर्सी, अलमारी, आदि वर्णों के व्यवस्थित समूह हैं।

Q2. हिंदी वर्णमाला में कितने अक्षर होते हैं

Ans – NCERT के अनुसार 50 वर्ण होते हैं और अं और अः को समिल नहीं किया जाता है। अगर इन्हें भी शामिल कर दैं तो ये 52 हो जाते हैं।

Q3. हिंदी वर्णमाला के जनक

Ans – हिंदी वर्ण माला की जन्मदात्री संस्कृत है। यदि संस्कृत में वर्णमाला का जन्म कैसे हुआ यह जानना हो तो ‘ शिव पुराण ‘ प्रमाण है!
ओम – प्रथम नाद है, जो अ उ म की मूल ध्वनि से बना है। बाकि सारी ध्वनि इसी ध्वनि के कम ज्यादा फेर बदल से निर्माण हूई!
‘ शिव पुराण ‘ में इस विषय में विस्तृत चित्रण उपलब्ध है।
तो हिन्दी या भारतीय भाषाओं के बारे में यह प्रामाणित है कि इनका कोइ लेखक नही है, बल्कि इनकी उत्पत्ति एक ओमकार से हूई!

Q4. हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर होते हैं

Ans – हिंदी वर्णमाला में कुल 44+8 = 52 अक्षर हैं। जिसमें 11 स्वर होते हैं।

Q5. हिंदी वर्णमाला में कितने व्यंजन है

Ans – हिंदी वर्णमाला में 33 व्यंजन होते हैं।

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