धर्म क्या है | Dharm Kya Hai

धर्म क्या है | Dharm Kya Hai

धर्म एक संस्कृत शब्द है। धर्म का अर्थ बहुत व्यापक है। ध + र् + म = धर्म। ध देवनागरी वर्णमाला 19वां अक्षर और तवर्ग का चौथा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह दन्त्य, स्पर्श, घोष तथा महाप्राण ध्वनि है। संस्कृत (धातु) धा + ड विशेषण- धारण करने वाला, पकड़ने वाला होता है। जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। पृथ्वी समस्त प्राणियों को धारण किए हुए है। जैसे हम किसी नियम को, व्रत को धारण करते हैं इत्यादि। इसका मतलब धर्म का अर्थ है कि जो सबको धारण किए हुए है अर्थात धारयति- इति धर्म:!। अर्थात जो सबको संभाले हुए है। सवाल उठता है कि कौन क्या धारण किए हुए हैं? धारण करना सही भी हो सकता है और गलत भी।

धर्म का अर्थ लोगों की आस्था और परंपरा भी होता है। क्योंकि ऋषि-मुनियों के ध्यान और सिद्धियों से इन परंपराओं को मजबूती मिली है। ये परंपराएं शाश्वत हैं इसलिए इसे सनातन धर्म भी कहा जाता है। धर्म अंग्रेजी के शब्द ‘रिलीजन’ का समानार्थक नहीं है। रिलीजन का अर्थ विश्वास से बंधा हुआ एक समूह है।

हिंदू धर्म क्या है | Hindu Dharm Kya Hai

हिन्दू धर्म को विश्‍व का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। हिन्दू शब्द की उत्पति भारत की प्रमुख सभ्यता सिन्धु घटी सभ्यता, प्रमुख नदी सिंधु नदी तथा भारत के प्रहरी हिमालय के नाम से मिलाकर मानी जाती है। इस धर्म को सनातन और वैदिक धर्म भी कहा जाता है।

हिन्दू धर्म भारत का सर्वप्रमुख धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण ‘सनातन धर्म’ भी कहा जाता है। ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी पैगम्बर या व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न कालों में इसमें नये-नये आयाम जुड़ते गये।

वास्तव में हिन्दू धर्म इतने विशाल परिदृश्य वाला धर्म है कि उसमें आदिम ग्राम देवताओं, भूत-पिशाची, स्थानीय देवी-देवताओं, झाड़-फूँक, तंत्र-मत्र से लेकर त्रिदेव एवं अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म और अत्यंत गूढ़ दर्शन तक- सभी बिना किसी अन्तर्विरोध के समाहित हैं और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की आराधना होती है। वास्तव में हिन्दू धर्म लघु एवं महान् परम्पराओं का उत्तम समन्वय दर्शाता है।

हिन्दू धर्म की प्रमुख अवधारणाएं निम्नलिखित हैं-

  • ब्रह्म– ब्रह्म को सर्वव्यापी, एकमात्र सत्ता, निर्गुण तथा सर्वशक्तिमान माना गया है। वास्तव में यह एकेश्वरवाद के ‘एकोऽहं, द्वितीयो नास्ति’ (अर्थात् एक ही है, दूसरा कोई नहीं) के ‘परब्रह्म’ हैं, जो अजर, अमर, अनन्त और इस जगत का जन्मदाता, पालनहारा व कल्याणकर्ता है।
  • आत्मा– ब्रह्म को सर्वव्यापी माना गया है अत: जीवों में भी उसका अंश विद्यमान है। जीवों में विद्यमान ब्रह्म का यह अशं ही आत्मा कहलाती है, जो जीव की मृत्यु के बावजूद समाप्त नहीं होती और किसी नवीन देह को धारण कर लेती है। अंतत: मोक्ष प्राप्ति के पश्चात् वह ब्रह्म में लीन हो जाती है।
  • पुनर्जन्म– आत्मा के अमरत्व की अवधारणा से ही पुनर्जन्म की भी अवधारणा पुष्ट होती है। एक जीव की मृत्यु के पश्चात् उसकी आत्मा नयी देह धारण करती है अर्थात् उसका पुनर्जन्म होता है। इस प्रकार देह आत्मा का माध्यम मात्र है।
  • योनि– आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 करोड़ योनियों की कल्पना की गई है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। योनि को आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में जैव प्रजातियाँ कह सकते हैं।
  • कर्मफल– प्रत्येक जन्म के दौरान जीवन भर किये गये कृत्यों का फल आत्मा को अगले जन्म में भुगतना पड़ता है। अच्छे कर्मों के फलस्वरूप अच्छी योनि में जन्म होता है। इस दृष्टि से मनुष्य सर्वश्रेष्ठ योनि है। परन्तु कर्मफल का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति अर्थात् आत्मा का ब्रह्मलीन हो जाना ही है।
  • स्वर्ग-नरक– ये कर्मफल से सम्बंधित दो लोक हैं। स्वर्ग में देवी-देवता अत्यंत ऐशो-आराम की ज़िन्दगी व्यतीत करते हैं, जबकि नरक अत्यंत कष्टदायक, अंधकारमय और निकृष्ट है। अच्छे कर्म करने वाला प्राणी मृत्युपरांत स्वर्ग में और बुरे कर्म करने वाला नरक में स्थान पाता है।
  • मोक्ष– मोक्ष का तात्पर्य है- आत्मा का जीवन-मरण के दुष्चक्र से मुक्त हो जाना अर्थात् परमब्रह्म में लीन हो जाना। इसके लिए निर्विकार भाव से सत्कर्म करना और ईश्वर की आराधना आवश्यक है।
  • चार युग– हिन्दू धर्म में काल (समय) को चक्रीय माना गया है। इस प्रकार एक कालचक्र में चार युग-कृत (सत्य), सत त्रेता, द्वापर तथा कलि-माने गये हैं। इन चारों युगों में कृत सर्वश्रेष्ठ और कलि निकृष्टतम माना गया है। इन चारों युगों में मनुष्य की शारीरिक और नैतिक शक्ति क्रमश: क्षीण होती जाती है। चारों युगों को मिलाकर एक महायुग बनता है, जिसकी अवधि 43,20,000 वर्ष होती है, जिसके अंत में पृथ्वी पर महाप्रलय होता है। तत्पश्चात् सृष्टि की नवीन रचना शुरू होती है।
  • चार वर्ण– हिन्दू समाज चार वर्णों में विभाजित है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। ये चार वर्ण प्रारम्भ में कर्म के आधार पर विभाजित थे। ब्राह्मण का कर्तव्य विद्यार्जन, शिक्षण, पूजन, कर्मकांड सम्पादन आदि है, क्षत्रिय का धर्मानुसार शासन करना तथा देश व धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करना, वैश्यों का कृषि एवं व्यापार द्वारा समाज की आर्थिक आवश्यकताएँ पूर्ण करना तथा शूद्रों का अन्य तीन वर्णों की सेवा करना एवं अन्य ज़रूरतें पूरी करना। कालांतर में वर्ण व्यवस्था जटिल होती गई और यह वंशानुगत तथा शोषणपरक हो गई। शूद्रों को अछूत माना जाने लगा। बाद में विभिन्न वर्णों के बीच दैहिक सम्बन्धों से अन्य मध्यवर्ती जातियों का जन्म हुआ। वर्तमान में जाति व्यवस्था अत्यंत विकृत रूप में दृष्टिगोचर होती है।
  • चार आश्रम– प्राचीन हिन्दू संहिताएँ मानव जीवन को 100 वर्ष की आयु वाला मानते हुए उसे चार चरणों अर्थात् आश्रमों में विभाजित करती हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्न्यास। प्रत्येक की संभावित अवधि 25 वर्ष मानी गई। ब्रह्मचर्य आश्रम में व्यक्ति गुरु आश्रम में जाकर विद्याध्ययन करता है, गृहस्थ आश्रम में विवाह, संतानोत्पत्ति, अर्थोपार्जन, दान तथा अन्य भोग विलास करता है, वानप्रस्थ में व्यक्ति धीरे-धीरे संसारिक उत्तरदायित्व अपने पुत्रों को सौंप कर उनसे विरक्त होता जाता है और अन्तत: सन्न्यास आश्रम में गृह त्यागकर निर्विकार होकर ईश्वर की उपासना में लीन हो जाता है।
  • चार पुरुषार्थ– धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष- ये चार पुरुषार्थ ही जीवन के वांछित उद्देश्य हैं उपयुक्त आचार-व्यवहार और कर्तव्य परायणता ही धर्म है, अपनी बौद्धिक एवं शरीरिक क्षमतानुसार परिश्रम द्वारा धन कमाना और उनका उचित तरीके से उपभोग करना अर्थ है, शारीरिक आनन्द भोग ही काम है तथा धर्मानुसार आचरण करके जीवन-मरण से मुक्ति प्राप्त कर लेना ही मोक्ष है। धर्म व्यक्ति का जीवन भर मार्गदर्शक होता है, जबकि अर्थ और काम गृहस्थाश्रम के दो मुख्य कार्य हैं और मोक्ष सम्पूर्ण जीवन का अंति लक्ष्य।
  • चार योग– ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग तथा राजयोग- ये चार योग हैं, जो आत्मा को ब्रह्म से जोड़ने के मार्ग हैं। जहाँ ज्ञान योग दार्शनिक एवं तार्किक विधि का अनुसरण करता है, वहीं भक्तियोग आत्मसमर्पण और सेवा भाव का, कर्मयोग समाज के दीन दुखियों की सेवा का तथा राजयोग शारीरिक एवं मानसिक साधना का अनुसरण करता है। ये चारों परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि सहायक और पूरक हैं।
  • चार धाम– उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम- चारों दिशाओं में स्थित चार हिन्दू धाम क्रमश: बद्रीनाथ, रामेश्वरम्, जगन्नाथपुरी और द्वारका हैं, जहाँ की यात्रा प्रत्येक हिन्दू का पुनीत कर्तव्य है।
  • प्रमुख धर्मग्रन्थ– हिन्दू धर्म के प्रमुख ग्रंथ हैं- चार वेद (ॠग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद) तेरह उपनिषद, अठारह पुराण, रामायण, महाभारत, गीता, रामचरितमानस आदि। इसके अलावा अनेक कथाएँ, अनुष्ठान ग्रंथ आदि भी हैं।

सनातन धर्म क्या है | Sanatan Dharm Kya Hai

सनातन धर्म अपने हिंदू धर्म के वैकल्पिक नाम से भी जाना जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये ‘सनातन धर्म’ नाम मिलता है। ‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।

सनातन धर्म जिसे अक्सर हिंदू धर्म के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया के सबसे प्रमुख धर्मों में से एक है। हालाँकि, आप पाएंगे कि सनातन धर्म को अक्सर धर्मों के बजाय जीवन का एक तरीका कहा जाता है। इस ब्लॉग में, हम सनातन धर्म से संबंधित आपके सभी संदेहों को दूर करेंगे, और आपको इसके बारे में और अधिक सिखाएंगे।

सनातन धर्म की उत्पत्ति पर बड़े पैमाने पर तर्क दिया जाता है। जबकि पश्चिमी विद्वानों का कहना है कि हिंदू धर्म सिंधु घाटी में लगभग 5000 वर्षों में स्थापित हुआ था, वैदिक विद्वान इस पर काफी हद तक असहमत हैं। सनातन धर्म के भीतर, यह माना जाता है कि यह धर्म किसी एक व्यक्ति या कई अन्य लोगों के समूह द्वारा नहीं बनाया गया था, बल्कि स्वयं भगवान द्वारा स्थापित किया गया था।

कहा जाता है कि त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु ने ब्रह्मा की रचना की और उन्हें वेदों का ज्ञान दिया और इस ज्ञान से भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना की। अर्थात सनातन धर्म उनका समय शुरू होने पर था, और यह परमात्मा द्वारा बनाया गया था।

सनातन शब्द का अर्थ होता है “नित्य”, “सार्वभौम”, अंग्रेजी में यूनिवर्सल

सनातन धर्म मतलब जो ख़ुद बख़ुद है, शुद्ध है, सबके लिए है। और सबके लिए समान रूप से हितकर है। जो सदा से है, जिस धर्म से सब धारण किया गया है, ध्रुव है और सदा रहेगा – वही सनातन है।

ये बिलकुल ऐसे है जैसे गुरुत्वाकर्शन के नियम हैं। जो कर्म, विचार, भाव सबके हित, सबकी भलाई, प्रेम भरे हों, वे इस धर्म के अनुकूल हैं और अन्यथा वाले प्रतिकूल। धर्म पूर्वक चेस्ठा लोगों को आंनद और विकास के रास्ते पर ले जाएगी, और उन्हें धर्म पालन के वक़्त ही अनुभव होगा, ना कि मरने के बाद।

शुद्ध और सनातन धर्म वही है जिसके पालन से अभी भी मनुष्य और समाज का कल्याण हो और मरने के बाद भी आगे सद्गति हो, कल्याण हो। जिसमें कल्याण के सिवाय कुछ और ना हो वही सनातन धर्म है।

सनातन इसलिए कहा जाता है क्यूँकि इसके नियम अटल है, प्राकृतिक हैं, ध्रुव हैं। आज भी है, कल भी था और कल भी रहेगा।

धर्म-अधर्म के द्वन्द में हो तब इसका सरल तरीक़ा पता करने का यह है, जिस बात को हम अपने प्रति नहीं पसंद नहीं करते वह बात हमें दूसरे के साथ नहीं करनी चाहिए।

इस्लाम धर्म क्या है, मुस्लिम धर्म क्या है | Islam Dharm Kya Hai

इस्लाम धर्म की शुरुआत सातवीं सदी में सऊदी अरब से हुई थी। इसी कारण इस्लाम को दुनिया के सबसे नए धर्मों में गिना जाता है। कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद ने इस्लाम धर्म की शुरुआत 610 ईस्वी में की थी। पैगंबर मोहम्मद ही वह इंसान है जिसने दुनिया को कुरान से रूबरू कराया हालांकि कई लोगों का मानना है कि इस्लाम धर्म पैगेंबर मोहम्मद के जन्म से पहले ही दुनिया में आ गया था।

इस्लाम की मुख्य मान्यताएँ यह हैं, कि एक ही सच्चा परमेश्‍वर है और यह कि मुहम्मद अल्लाह का नबी अर्थात् भविष्यद्वक्ता था। बस इस वाक्य को कहने मात्र से ही, एक व्यक्ति इस्लाम में धर्म परिवर्तित हो जाता है। शब्द “मुस्लिम” का अर्थ “वह व्यक्ति जो स्वयं को अल्लाह को समर्पित करता है।” इस्लाम स्वयं को एक सच्चा धर्म कहता है, जहाँ से अन्य सभी धर्मों (जिसमें यहूदी और ईसाई धर्म भी सम्मिलित हैं) निकल कर आए हैं।

मुस्लिम अपने जीवनों को पाँच स्तम्भों पर आधारित करता है:

  • विश्‍वास की गवाही देना : “एक ही सच्चा परमेश्‍वर (अल्लाह) है और यह कि मुहम्मद अल्लाह का नबी (भविष्यद्वक्ता) है”।
  • 2. प्रार्थना करना :पाँच प्रार्थनाओं का पालन प्रतिदिन करना चाहिए।
  • 3. दान देना : एक व्यक्ति को आवश्यकता में पड़े हुओं की सहायता करनी चाहिए, क्योंकि सब कुछ अल्लाह की ओर से आता है।
  • 4. उपवास करना : कभी-कभी के उपवास के अतिरिक्त, सभी मुसलमानों को रमजान (जो इस्लाम के पंचांग का नौवां महीना है), के महीने में किए जाने वाले उपवास को भी मनाना चाहिए)।
  • 5. हज़ पर जाना : मक्का की तीर्थयात्रा (मकाह) को जीवन में कम से कम एक बार अवश्य किया जाना चाहिए (जो इस्लाम के पंचांग का बारहवां महीना है)।

इन पांच सिद्धान्तों, जो मुसलमानों के लिए आज्ञाकारिता के ढांचे हैं, को गम्भीरता से और शाब्दिक रीति से लिया जाना चाहिए। एक मुस्लिम का स्वर्गलोक में प्रवेश इन पाँच सिद्धान्तों की आज्ञा पालन के ऊपर ही टिका हुआ है।

बौद्ध धर्म क्या है | Baudh Dharm Kya Hai

भगवान बुद्ध के समय किसी भी प्रकार का कोई पंथ या सम्प्रदाय नहीं था किंतु बुद्ध के निर्वाण के बाद द्वितीय बौद्ध संगति में भिक्षुओं में मतभेद के चलते दो भाग हो गए। यह बात पता चलती है कि पहले को हिनयान और दूसरे को महायान कहते हैं।

2,500 वर्ष पहले भारत में सिद्धार्थ गौतम – जो बुद्ध के नाम से विख्यात हैं – द्वारा स्थापित धर्म का प्रसार एशिया भर में हुआ और आज यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। बुद्ध ने अपना अधिकांश जीवन ज्ञानोदय प्राप्ति की उन विधियों  की शिक्षा देते हुए बिताया जिन्हें उन्होंने स्वयं अनुभव किया था, ताकि दूसरे लोग भी ज्ञानोदय प्राप्त बुद्ध बन सकें। बुद्ध ने यह महसूस किया कि हालाँकि सभी लोगों में बुद्धत्व को प्राप्त करने की योग्यता समान रूप से विद्यमान होती है, फिर भी उनकी पसंद, रुचियों और प्रतिभाओं में व्यापक अंतर होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अनेक प्रकार की विधियों की शिक्षा दी जिनकी सहायता से व्यक्ति अपनी सीमाओं से ऊपर उठ सके और अपनी पूरी सामर्थ्य को विकसित कर सके। 

बुद्ध की सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा को चार आर्य सत्यों के रूप में जाना जाता है जोकि चार ऐसे तथ्य हैं जिन्हें सिद्ध जन सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं:

पहला आर्य सत्य: यथार्थ दुख

हालाँकि जीवन में अनेक प्रकार की खुशियाँ हैं, लेकिन फिर भी एक छोटे से कीट से लेकर किसी बेघर मनुष्य से लेकर बड़े से बड़े अरबपति तक सभी को जीवन में दुखों का सामना करना पड़ता है। जन्म और मृत्यु के बीच मनुष्य बुढ़ापे, रोग और प्रियजन की मृत्यु जैसे दुखों के अनुभवों से होकर गुज़रते हैं। जब हमें वह नहीं मिलता जो हम चाहते हैं, या जब हमें वह मिलता है जो हम नहीं चाहते तो हमें कुंठा और निराशा का सामना करना पड़ता है। 

दूसरा आर्य सत्य: दुख का यथार्थ कारण

हमारी समस्याएं जटिल कारणों और स्थितियों से उत्पन्न होती हैं, लेकिन बुद्ध ने बताया कि यथार्थ के बोध का अभाव ही हमारे दुख का असली कारण है। हमारा चित्त जिस प्रकार के असंभव ढंग से हमारे अपने और दूसरे सभी लोगों और सभी चीज़ों के अस्तित्व की कल्पना करता है, वही दुख का मूल कारण है।

तीसरा आर्य सत्य: दुख का यथार्थ रोधन

बुद्ध ने पाया कि दुखों के मूल कारण – हमारे अपने अज्ञान – को नष्ट करके अपने सभी दुखों से इस प्रकार मुक्ति पाई जा सकती है कि हमें फिर कभी उन दुखों को न भोगना पड़े।

चौथा आर्य सत्य: चित्त का यथार्थ मार्ग

जब हम वास्तविकता का सही बोध हासिल करके अज्ञान को दूर कर देते हैं तो समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। ऐसा कर पाने के लिए हमें यह बोध हासिल करने की आवश्यकता होती है कि सभी जीव परस्पर सम्बद्ध हैं और एक दूसरे पर निर्भर हैं। इस बोध के आधार पर हम सभी जीवों के लिए समान रूप से  प्रेम और करुणा का भाव विकसित करते हैं। एक बार जब हम स्वयं अपने औ दूसरों के अस्तित्व के बारे में अपने भ्रम को दूर कर लेते हैं तो फिर हम स्वयं अपनी और दूसरों की भलाई के लिए काम कर पाते हैं।

बौद्ध धर्म में कर्म, विगत और भविष्य के जन्मों, पुनर्जन्म की प्रक्रिया, पुनर्जन्म से मुक्ति, और ज्ञानोदय की प्राप्ति जैसे विषयों के बारे में चर्चा की जाती है। इसमें जाप, ध्यान साधना और प्रार्थना जैसे अभ्यास शामिल होते हैं। बौद्ध धर्म की प्रत्येक परम्परा के अपने अलग-अलग ग्रंथ हैं जो बुद्ध की मूल शिक्षाओं पर आधारित हैं – यही कारण है कि बौद्ध धर्म में “बौद्ध बाइबल” जैसा कोई एक पवित्र ग्रंथ नहीं है। 

जैन धर्म क्या है | Jain Dharm Kya Hai

जैन धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। ‘जैन’ उन्हें कहते हैं, जो ‘जिन’ के अनुयायी हों। ‘जिन’ शब्द बना है ‘जि’ धातु से। ‘जि’ यानी जीतना। ‘जिन’ अर्थात् जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं ‘जिन’। जैन धर्म अर्थात् ‘जिन’ भगवान का धर्म। वस्त्र-हीन बदन, शुद्ध शाकाहारी भोजन और निर्मल वाणी एक जैन-अनुयायी की पहली पहचान है। यहाँ तक कि जैन धर्म के अन्य लोग भी शुद्ध शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करते हैं तथा अपने धर्म के प्रति बड़े सचेत रहते हैं।

अशोक के अभिलेखों से हमें यह पता चलता है कि उस समय में मगध में Jain धर्म का प्रचार हुआ करता था।इसी समय मठों में बसने वाले जैन मुनियों ने यह मतभेद शुरू हुआ था कि चित्रकारों की मूर्तियां कपड़े पहना कर रखी जानी चाहिए यह नग्न अवस्था में है। मतभेद इस बात पर हुआ था कि जैन मुनियों को वस्त्र पहनना चाहिए यहां नहीं। फिर धीरे-धीरे आगे चलकर यह मतभेद बहुत बढ़ गया। फिर ईशा सदी की पहली सदी में आकर Jain धर्म को मानने वाले मुनि दो दलों में बंट गए।

  1. श्वेतांबर
  2. दिगंबर

श्वेतांबर दल व कहलाए जिनके साधु सफेद वस्त्र कपड़े पहनते थे। दिगंबर दल व कहलाए जिनके स्वादु बिना कपड़े के रहते थे यानी की नग्न रहते थे। अभी के समय में यह माना जाता है कि दोनों संप्रदाय में मतभेद दार्शनिक सिद्धांतों से ज्यादा चरित्र को लेकर मतभेद ज्यादा है। दिगंबर दल के लोग आश्रम पालन में अधिक कठोर होता है परंतु श्वेतांबर दल के लोग कुछ उदार होते हैं।सितंबर दल के संप्रदाय के मुनि श्वेत रंग के वस्त्र पहनते हैं और दिगंबर दल के मुनीनी वस्त्र रहकर साधना करते हैं। यह सभी नियम केवल मुनियों पर ही लागू होता है।

दिगंबर दल की तीन शाखा है:

  • मंदिर मार्गी
  • मूर्ति पूजक
  • तेरापंथी

श्वेतांबर दाल की दो शाखा है:

  •  मंदिर मार्गी
  • स्थानकवासी

करीब 300 साल पहले श्वेतांबर दल में एक नई शाखा प्रकट हुई वह स्थानकवासी से कहलाई। स्थानकवासी के लोग मूर्तियों को नहीं पूछते। Jain धर्म की कई सारी उप शाखाएं हैं जैसे

  • तेरहपंथी
  • बीसपंथी
  • तारण पंथी
  • यापनीय

Jain धर्म मैं सभी शाखाओं में कुछ ना कुछ थोड़ा बहुत मतभेद होने के बावजूद भगवान महावीर अहिंसा ,संयम  अनेकांतवाद  में सबका सम्मान विश्वास रखते थे।

सबसे बड़ा धर्म क्या है | Sabse Bada Dharm Kya Hai

दुनिया में तर-तरह के धर्म है और इन धर्मों का पालन करने वालों की संख्या भी लाखों करोड़ों में हैं. सभी धर्मों के अलग-अलग विधि-विधान और नियम हैं. सभी धर्मों का अपने-अपने स्तर पर अलग महत्व है। लेकिन बात जब दुनिया के सबसे बड़े धर्म या किस धर्म के लोगों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है कि आती है तो अधिकतर लोग इस पर मौन रह जाते है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती है। लेकिन आप निराश ना हो आज हम आपसे इसी विषय पर बात करने वाले है कि दुनिया का सबसे बड़ा धर्म कौन-सा है ? दुनिया के कुछ प्रमुख धर्मों और उनकी जनसंख्या से आपको रुबरू कराएंगे।

ईसाई धर्म

ईसाई धर्म को दुनिया का सबसे बड़ा धर्म माना जाता है क्योंकि पूरी दुनिया में 31 फ़ीसदी आंकड़ा ईसाई धर्म का पालन करने वाले लोगों का है। 2.2 अरब से भी अधिक लोग ईसाई धर्म का पालन करते हैं।

इस्लाम धर्म

इस्लाम को मानने वालों को मुसलमान कहा जाता है. इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। दुनियाभर में कुल 1.6 अरब मुसलमान फैले हुए हैं।

हिंदू धर्म

दुनिया के सबसे बड़े और महान धर्मों में हिंदू धर्म का नाम तीसरे नंबर पर आता है. पूरी दुनिया में हिंदू धर्म का पालन केवल एशिया महादेश के भारत देश में किया जाता है और उसके बाद भी इस धर्म का पालन करने वाले लोगों की संख्या 1 अरब यानी 100 करोड़ से भी अधिक है. जो स्वयं ही इस धर्म की महानता को प्रदर्शित करता है।

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है. बौद्ध धर्म को मानने वालों की संख्या लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में हैं। दुनिया में कुल 37 करोड़ बुद्धिष्ठ मौजूद है. यह आंकड़ा वैश्विक आबादी का कुल 5 फीसदी है।

सिख धर्म

वैसे तो बौद्ध धर्म के तरह सिख धर्म का जन्म भी भारत से ही हुआ था. लेकिन आज यह धर्म भारत के अलावा भी अन्य कई देशों में माने जाते हैं. पूरी दुनिया में 2.3 करोड़ लोग सिख धर्म का पालन करते हैं. सिख धर्म का पालन करने वाले लोगों को पंजाबी कहा जाता है।

जैन धर्म

जैन धर्म का सबसे ज्यादा पालन हमारे देश में किया जाता है और वही पूरी दुनिया की बात की जाए तो पूरी दुनिया में 42 लाख लोग जैन धर्म का अनुसरण करते हैं. जैन धर्म का पालन करना अन्य धर्मो के मुकाबले सबसे मुश्किल है।

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FAQ | धर्म क्या है in Hindi

Q1. भारत का राष्ट्रीय धर्म क्या है

Ans – आज के समय में भारत में विविध धर्मों का पालन किया जाता है। भारत की आबादी का ज्यादातर हिस्सा हिंदू धर्म का पालन करता है जो इस देश का सबसे प्राचीन धर्म है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार 80 प्रतिशत भारतीय हिंदू धर्म का पालन करते हैं। इसलिए हम किसी हटा कर सकते हैं कि भारत का राष्ट्रीय धर्म हिंदू है लेकिन यह आधिकारिक रूप से घोषित नहीं किया गया है।

Q2. शास्त्रों के अनुसार धर्म क्या है

Ans – धर्म का अर्थ होता है “ धारण करना “
धर्मग्रंथों में लिखा है कि सत्य, क्षमा, दया आदि के बिना पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति नही हो सकती।

Q3. धर्म क्या है गीता के अनुसार

Ans – श्रीमद् भागवत् गीता (18:66) में श्री कृष्ण जी धर्म के विषय में अर्जुन को उपदेश देते है-
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।।

अर्थात् तू सभी धर्मों का परित्याग कर मेरी (ईश्वर) की शरण में आ। तू शोक मत कर मैं तुझे सभी पापों से मुक्ति दिला दूँगा।

इस श्लोक के संदर्भ को समझने का प्रयास करते है.. यहाँ श्री कृष्ण जी यह कह रहे है कि तू सभी धर्मों का परित्याग कर; याने जिनको तू (या संसार) धर्म समझकर बैठा है वह वास्विकता में धर्म नहीं है। धर्म तो सिर्फ एक ही है, जो शाश्वत है।


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