हरित क्रांति क्या है | Harit Kranti Kya hai

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हरित क्रांति किसे कहते हैं | Harit Kranti Kise Kahate Hain

आज के समय में भारत की सवा सौ करोड़ जनसंख्या का भोजन भारतीय कृषि पर निर्भर है। देश आजादी के बाद लगातार बढ़ती आबादी को को भोजन उपलब्ध कराना देश के लिए एक बड़ी समस्या थी। इस समस्या को हल करने के लिए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने कम भूमि में उच्च पैदावार वाले उन्नत किस्म के फसलों का विकास किया। हरित क्रांति मुख्य रूप से गेहूं की फसल से संबंधित है। इस तरह देखते-देखते भारत में कृषि की अन्य फसलों की पैदावार में लगातार बढ़ोतरी हुई। जिसे हरित क्रांति का नाम दिया गया।

हरित क्रांति उच्च गुणवत्ता वाले बीज रसायनिक उर्वरक व गहरी सिंचाई आधारित कृषि उत्पादन की एक नवीन प्रक्रिया थी। इस

क्रांति को ‘अधिक उपज देने वाली किस्मों का कार्यक्रम’ (High Yielding Varieties Programme – HYVP)

के नामसे भी जाना जाता है। हरित क्रांति का दूसरा नाम ‘सदाबहार क्रांति’ भी है।

हरित क्रांति शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिका के डॉक्टर विलियम गॉड ने किया था हरित क्रांति कार्यक्रम के तहत रॉकफेलर एवं फोर्ड फाउंडेशन के तत्वधान में बोने फसल वाली गेहूं की एक ऐसी किस्म का विकास किया गया, जो –

  • पारंपरिक किस्मत से अधिक उपज वाली थी;
  • मौसम परिवर्तन से कम प्रभावित होती थी;
  • शीघ्र तैयार हो जाती थी।

हरित क्रांति क्या है परिभाषा | Harit Kranti Ki Paribhasha

हरित क्रांति (green revolution) शब्द हरित एवं क्रांति शब्दों से मिलकर बना है जिसमें क्रांति शब्द का शाब्दिक अर्थ किसी घटना में तेजी से परिवर्तन होने तथा उस परिवर्तन का प्रभाव आने वाले लंबे समय तक रहने से है जबकि हरित शब्द का तात्पर्य कृषि या फसलों से लगाया जाता है अर्थात शाब्दिक अर्थो में देखा जाए तो हरित क्रांति का अर्थ किसी देश में कृषि फसलों के उत्पादन में एक निश्चित समय में ही विशेष गति से वृद्धि का होना तथा उत्पादन मे यह वृद्धि दर आने वाले लंबे समय तक बनाए रखने से हैं।

हरित क्रांति के उद्देश्य | Harit Kranti Se Kya Abhipray Hai

  • लघु अवधि के लिये: दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत में भुखमरी की समस्या  को दूर करने हेतु  हरित क्रांति शुरू की गई थी।
  • दीर्घ अवधि के लिये: दीर्घकालिक उद्देश्यों में ग्रामीण विकास, औद्योगिक विकास पर आधारित समग्र कृषि का आधुनिकीकरण; बुनियादी ढांँचे का विकास, कच्चे माल की आपूर्ति आदि शामिल थे।
  • रोज़गार: कृषि और औद्योगिक दोनों क्षेत्र के श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करना।
  • वैज्ञानिक अध्ययन: स्वस्थ  पौधों का उत्पादन करना, जो अनुकूल/विषम जलवायु और रोगों का सामना करने में सक्षम हो।
  • कृषि का वैश्वीकरण: गैर-औद्योगिक राष्ट्रों में प्रौद्योगिकी का प्रसार करना और प्रमुख कृषि क्षेत्रों में निगमों की स्थापना को प्रोत्साहित करना।

हरित क्रांति के मूल तत्त्व | Harit Kranti Kya Thi

  • कृषि क्षेत्र का विस्तार: यद्यपि वर्ष 1947 से ही कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल को विस्तारित किया जा रहा था परंतु यह खाद्यान की बढ़ती मांँग को पूरा करने हेतु पर्याप्त नहीं था।
    • हरित क्रांति ने कृषि भूमि के विस्तार में सहायता प्रदान की है।
  • दोहरी फसल प्रणाली: दोहरी फसल,  हरित क्रांति की एक प्राथमिक विशेषता थी। इसके तहत वर्ष में एक के बजाय दो फसल प्राप्त करने का निर्णय लिया गया।
    • प्रतिवर्ष एक फसल को प्राप्त करना इस तथ्य पर आधारित था कि बरसात का मौसम वर्ष में केवल एक बार ही आता है।
    • हरित क्रांति के दूसरे चरण में जल की आपूर्ति के लिये बड़ी सिंचाई परियोजनाएँ शुरू की गई। बांँधों का निर्माण किया गया और अन्य सरल सिंचाई तकनीकों को भी अपनाया गया।
  • उन्नत आनुवंशिकी बीजों का उपयोग: श्रेष्ठ आनुवंशिकी (Superior Genetics) बीजों का उपयोग करना हरित क्रांति का वैज्ञानिक पहलू था।
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council for Agricultural Research) द्वारा उच्च उपज देने वाले बीज, मुख्य रूप से गेहूं , चावल, बाजरा और मक्का के बीजों की नई किस्मों को विकास किया गया।
  • क्रांति में शामिल महत्त्वपूर्ण फसलें:
    • मुख्य फसलें गेहूंँ, चावल, ज्वार, बाजरा और मक्का ।
    • गैर-खाद्यान्नों फसलों को नई रणनीति के दायरे से बाहर रखा गया था।
    • गेहूँ कई वर्षों तक हरित क्रांति का मुख्य आधार बना रही।

हरित क्रांति से आप क्या समझते हैं | Harit Kranti Se Aap Kya Samajhte Hain

भारत की नई कृषि नीति सन् 1967-68 में लागू की गई, जिसमें अधिक उपज देने वाले बीजों को बोया गया तथा कृषि की नई तकनीकों का प्रयोग किया गया ।जिससे फसल उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई, इसे ही हरित क्रांति कहा गया। भारत में हरित क्रांति लाने का श्रेय सी सुब्रमण्यम को जाता है ।एम ऐस स्वामीनाथन एक जाने माने वनस्पति विज्ञानी थे जिन्होंने हरित क्रान्ति लाने के लिए सी सुब्रमण्यम के साथ काम किया ।

हरित क्रांति शब्द का प्रयोग 1940 और 1960 के समयकाल में विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र में किया गया था। सिंचाई के लिए आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था, कृत्रिम खाद एवं विकसित कीट नाशक तथा बीज से लेकर अंतिम उत्पाद तक विभिन्न नवीनतम उपकरण व मशीनों की व्यवस्था, हरित क्रान्ति का ही परिणाम माना जाता है।

हरित क्रांति का अर्थ और इतिहास

हरित क्रांति शब्द का प्रयोग 1940 और 1960 के समयकाल में विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र में किया गया था। इस समय कृषि के पारंपरिक तरीकों को आधुनिक तकनीक और उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया गया। परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के प्रयास किए गए जिसके चमत्कारिक प्रभाव दिखाई देने लगे। कृषि क्षेत्र में निरंतर शोध के माध्यम से पारंपरिक कृषि तकनीक में परिवर्तन करके आधारभूत परिवर्तन किए जाने लगे। मूलतः हरित क्रान्ति के जनक अमरीकी कृषि वैज्ञानिक नौरमन बोरलॉग माने जाते हैं।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उन्होनें विकास की ओर कदम बढ़ाते हुए जापान को कृषि तकनीक में परिवर्तन के माध्यम से ही उन्होनें पुनर्निर्माण की राह पर खड़ा कर दिया था। इसके लिए उन्होनें न केवल फसलों के लिए नए और विकसित व संसाधित बीजों के साथ नवीनतम तकनीक का भी इस्तेमाल किया। सिंचाई के लिए आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था, कृत्रिम खाद एवं विकसित कीट नाशक तथा बीज से लेकर अंतिम उत्पाद तक विभिन्न नवीनतम उपकरण व मशीनों की व्यवस्था, हरित क्रान्ति का ही परिणाम माना जाता है।

हरित क्रान्ति के ध्वजवाहक

नौरमन बोरलॉग जिन्हें हरित क्रांति का जनक भी कहा जाता है के प्रयासों को आगे ले जाने वालों में विभिन्न संस्थाएं व शोधकर्ता शामिल हैं। 1960 में फिलीपींस की अंतर्राष्ट्रीय धान शोध संस्थान जिसका गठन सयुंक्त रूप से रोकफिलर एवं फोर्ड फाउंडेशन के साथ हुआ था, इस काम में सबसे आगे मानी जाती हैं। इनके प्रयासों के परिणामस्वरूप फिलीपींस के साथ ही इन्डोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका के साथ अमरीका में फैले गैर-सोवियत देश, एशिया, उत्तरी अफ्रीका आदि में उन्नत किस्म की फसल आसानी से पैदा करी जा सकी।

हरित क्रान्ति के क्रांतिकारी परिणाम

विश्व के बड़े हिस्से में हरित क्रान्ति ने नामानुरूप क्रांतिकारी परिणाम दिखाने शुरू कर दिये। विकासशील देशों ने कम स्थान पर अधितकम और उच्चतम फसल के उत्पादन को सफल बना दिया। नए और विकसित बीजों का निर्माण आरंभ हुआ जो स्वयं कीटों से अपनी रक्षा करने में सक्षम सिद्ध हुए। समन्यृप में ज़मीन की उर्वरता को बनाए रखने के लिए उसमें एक वर्ष में दो अलग-अलग फसलों की खेती करी जाती थी। लेकिन हरित क्रांति के परिणामस्वरूप इस परंपरा को भी नया रूप दिया गया और के वर्ष में एक ही ज़मीन और एक फसल दो बार की प्रक्रिया को संभव कर दिया गया।

हरित क्रांति की विशेषताएं | Harit Kranti Ki Visheshta

हरित क्रांति का तात्पर्य कृषि उत्पादन मे उस तीव्र वृद्धि से है, जो अधिक उपज देने वाले (High Yieding Varity) बीजों, रासायनिक उर्वरकों व नई तकनीक के प्रयोग के परिमामस्वारूप हुई है। इस हरित क्रांति के फलस्वरूप फसलों की उत्पादकता मे काफी वृद्धि हुई है। भारतीय कृषि मे उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश व तेलंगाना मे गेहूँ व चावल का अधिक उत्पादन उन्नत किस्म के बीजों की देन है।

  • अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग।
  • रासायनिक उर्वरकों का उपयोग।
  • कीटनाशक दवाओं का प्रयोग।
  • कृषि यंत्रीकरण का विस्तार।
  • लघु एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं का विस्तार।
  • भूमि संरक्षण की नयी तकनीकों का प्रयोग।
  • कृषि उत्पादों के समर्थन मूल्य का निर्धारण।
  • कृषि शोध एवं भूमि परीक्षण को बढ़ावा।
  • कृषि विपणन सुविधाओं मे वृद्धि।
  • कृषि एवं ॠण सुविधाओं का विस्तार।

हरित क्रांति के जनक | Harit Kranti Ke Janak, Harit Kranti Ke Janak Kaun Hai

हरित क्रांति 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug) द्वारा शुरू किया गया एक प्रयास था। इन्हें विश्व में ‘हरित क्रांति के जनक’ (Father of Green Revolution) के रूप में जाना जाता है।

नॉरमन बोरलॉग हरित क्रांति के प्रवर्तक माने जाते हैं लेकिन भारत में हरित क्रांति लाने का श्रेय सी सुब्रमण्यम को जाता है. एम ऐस स्वामीनाथन एक जाने माने वनस्पति विज्ञानी थे जिन्होंने हरित क्रान्ति लाने के लिए सी सुब्रमण्यम के साथ काम किया.

हरित क्रांति की शुरुआत कब हुई | Harit Kranti Ki Shuruaat Kab Hui

  • हरित क्रांति 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug) द्वारा शुरू किया गया एक प्रयास था। इन्हें विश्व  में ‘हरित क्रांति के जनक’ (Father of Green Revolution) के रूप में जाना जाता है।
    • वर्ष 1970 में नॉर्मन बोरलॉग को उच्च उपज देने वाली किस्मों (High Yielding Varieties- HYVs) को विकसित करने के उनके  कार्य के लिये नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व मुख्य रूप से एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा किया गया।
  • हरित क्रांति के परिणामस्वरूप खाद्यान्न (विशेषकर गेहूंँ और चावल) के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई, जिसकी शुरुआत  20वीं शताब्दी के मध्य में विकासशील देशों में नए, उच्च उपज देने वाले किस्म के बीजों के प्रयोग के कारण हुई।
    • इसकी प्रारंभिक सफलता मेक्सिको और भारतीय उपमहाद्वीप में देखी गई।
  • वर्ष 1967-68 तथा वर्ष 1977-78 की अवधि में हुई हरित क्रांति  भारत  को खाद्यान्न की कमी वाले देश की श्रेणी से निकालकर विश्व  के अग्रणी कृषि देशों की श्रेणी में परिवर्तित कर दिया।

भारत में हरित क्रांति कब शुरू हुई थी | Bharat Mein Harit Kranti Ke Janak Kaun The, Bharat Mein Harit Kranti Ke Janak Kaun Hai

1965 में भारत के तत्कालीन कृषि मंत्री श्री सी. सुब्रह्मण्यम ने हरित क्रांति का बिगुल उन्नत तकनीक के गहूँ के बीजों का आयात करके किया था। इसके अतिरिक्त उन्होनें कृषि क्षेत्र को उधयोग का दर्जा देते हुए उसे औध्योगिक तकनीक व उपकरणों का समन्वय कर दिया। सिंचाई के लिए पर्याप्त नहरें और कुओं का निर्माण, किसानों को फसल के उचित दाम के साथ ही उनके उत्पादन के सही संग्रहण की व्यवस्था करने का भी पूरा इंतेजाम कर दिया।

भारत में हरित क्रांति का नेतृत्व मुख्य रूप से एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा किया गया। इनका जन्म 7 अगस्त 1925 में कुंभकोणम जो तमिलनाडु राज्य में स्थित है में हुआ था। यह एक जेनेटिक्स वैज्ञानिक थे जिन्होंने मेक्सिको के बीजों को पंजाब के देशी बीजों के साथ मिश्रित करते हुए एक नई एवं अत्यधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का विकास किये थे। भारत में हरित क्रांति लाने में इनका काफी योगदान था। कृषि मे इन योगदानो के कारण ही इन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत में भुखमरी की समस्या को दूर करने हेतु हरित क्रांति शुरू की गई थी।

हरित क्रांति किससे संबंधित है | Harit Kranti Sambandhit Hai

भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत सन 1967-68 में प्रारम्भ करने का श्रेय नोबल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर नारमन बोरलॉग को माना जाता हैं। लेकिन भारत में एम. एस. स्वामीनाथन को इसका जनक माना जाता है। हरित क्रांन्ति से अभिप्राय देश के सिंचित एवं असिंचित कृषि क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाले संकर तथा बौने बीजों के उपयोग से फसल उत्पादन में वृद्धि करना हैं। हरित क्रान्ति भारतीय कृषि में लागू की गई उस विकास विधि का परिणाम है, जो 1960 के दशक में पारम्परिक कृषि को आधुनिक तकनीकि द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने के रूप में सामने आई।

क्योंकि कृषि क्षेत्र में यह तकनीकि एकाएक आई, तेजी से इसका विकास हुआ और थोड़े ही समय में इससे इतने आश्चर्यजनक परिणाम निकले कि देश के योजनाकारों, कृषि विशेषज्ञों तथा राजनीतिज्ञों ने इस अप्रत्याशित प्रगति को ही ‘हरित क्रान्ति’ की संज्ञा प्रदान कर दी। हरित क्रान्ति की संज्ञा इसलिये भी दी गई, क्योंकि इसके फलस्वरूप भारतीय कृषि निर्वाह स्तर से ऊपर उठकर आधिक्य स्तर पर आ चुकी थी।

उपलब्धियाँ

हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। कृषि आगतों में हुए गुणात्मक सुधार के फलस्वरूप देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है। खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता आई है। व्यवसायिक कृषि को बढ़ावा मिला है। कृषकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है। कृषि आधिक्य में वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति के फलस्वरूप गेहूँ, गन्ना, मक्का तथा बाजरा आदि फ़सलों के प्रति हेक्टेअर उत्पादन एवं कुल उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति की उपलब्धियों को कृषि में तकनीकि एवं संस्थागत परिवर्तन एवं उत्पादन में हुए सुधार के रूप में निम्नवत देखा जा सकता है-

कृषि में तकनीकि एवं संस्थागत सुधार

रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग

नवीन कृषि नीति के परिणामस्वरूप रासायनिक उर्वरकों के उपभोग की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है। 1960-1961 में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग प्रति हेक्टेअर दो किलोग्राम होता था, जो 2008-2009 में बढ़कर 128.6 किग्रा प्रति हेक्टेअर हो गया है। इसी प्रकार, 1960-1961 में देश में रासायनिक खादों की कुल खपत 2.92 लाख टन थी, जो बढ़कर 2008-2009 में 249.09 लाख टन हो गई।

उन्नतशील बीजों के प्रयोग में वृद्धि

देश में अधिक उपज देने वाले उन्नतशील बीजों का प्रयोग बढ़ा है तथा बीजों की नई नई किस्मों की खोज की गई है। अभी तक अधिक उपज देने वाला कार्यक्रम गेहूँ, धान, बाजरा, मक्का व ज्वार जैसी फ़सलों पर लागू किया गया है, परन्तु गेहूँ में सबसे अधिक सफलता प्राप्त हुई है। वर्ष 2008-2009 में 1,00,000 क्विंटल प्रजनक बीज तथा 9.69 लाख क्विंटल आधार बीजों का उत्पादन हुआ तथा 190 लाख प्रमाणित बीज वितरित किये गये।

सिंचाई सुविधाओं का विकास

नई विकास विधि के अन्तर्गत देश में सिंचाई सुविधाओं का तेजी के साथ विस्तार किया गया है। 1951 में देश में कुल सिंचाई क्षमता 223 लाख हेक्टेअर थी, जो बढ़कर 2008-2009 में 1,073 लाख हेक्टेअर हो गई। देश में वर्ष 1951 में कुल संचित क्षेत्र 210 लाख हेक्टेअर था, जो बढ़कर 2008-2009 में 673 लाख हेक्टेअर हो गया।

पौध संरक्षण

नवीन कृषि विकास विधि के अन्तर्गत पौध संरक्षण पर भी ध्यान दिया जा रहा है। इसके अन्तर्गत खरपतवार एवं कीटों का नाश करने के लिये दवा छिड़कने का कार्य किया जाता है तथा टिड्डी दल पर नियन्त्रण करने का प्रयास किया जाता है। वर्तमान में समेकित कृषि प्रबन्ध के अन्तर्गत पारिस्थितिकी अनुकूल कृमि नियंत्रण कार्यक्रम लागू किया गया है।

बहुफ़सली कार्यक्रम

बहुफ़सली कार्यक्रम का उद्देश्य एक ही भूमि पर वर्ष में एक से अधिक फ़सल उगाकर उत्पादन को बढ़ाना है। अन्य शब्दों में भूमि की उर्वरता शक्ति को नष्ट किये बिना, भूमि के एक इकाई क्षेत्र से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना ही बहुफ़सली कार्यक्रम कहलाता है। 1966-1967 में 36 लाख हेक्टेअर भूमि में बहुफ़सली कार्यक्रम लागू किया गया। वर्तमान समय में भारत की कुल संचित भूमि के 71 प्रतिशत भाग पर यह कार्यक्रम लागू है।

आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग

नई कृषि विकास विधि एवं हरित क्रान्ति में आधुनिक कृषि उपकरणों, जैसे- ट्रैक्टर, थ्रेसर, हार्वेस्टर, बुलडोजर तथा डीजल एवं बिजली के पम्पसेटों आदि ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इस प्रकार कृषि में पशुओं तथा मानव शक्ति का प्रतिस्थापन संचालन शक्ति द्वारा किया गया है, जिससे कृषि क्षेत्र के उपयोग एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है।

कृषि सेवा केन्द्रों की स्थापना

कृषकों में व्यवसायिक साहस की क्षमता को विकसित करने के उद्देश्य से देश में कृषि सेवा केन्द्र स्थापित करने की योजना लागू की गई है। इस योजना में पहले व्यक्तियों को तकनीकि प्रशिक्षण दिया जाता है, फिर इनसे सेवा केंद्र स्थापित करने को कहा जाता है। इसके लिये उन्हें राष्ट्रीयकृत बैंकों से सहायता दिलाई जाती है। अब तक देश में कुल 1,314 कृषि सेवा केन्द्र स्थापित किये जा चुके हैं।

कृषि उद्योग निगम

सरकारी नीति के अन्तर्गत 17 राज्यों में कृषि उद्योग निगमों की स्थापना की गई है। इन निगमों का कार्य कृषि उपकरणों व मशीनरी की पूर्ति तथा उपज प्रसंस्करण एवं भण्डारण को प्रोत्साहन देना है। इसके लिये यह निगम किराया क्रय पद्धति के आधार पर ट्रैक्टर, पम्पसेट एवं अन्य मशीनरी को वितरित करता है।

विभिन्न निगमों की स्थापना

हरित क्रान्ति की प्रगति मुख्यतः अधिक उपज देने वाली किस्मों एवं उत्तम सुधरे हुये बीजों पर निर्भर करती है। इसके लिये देश में 400 कृषि फार्म स्थापित किये गये हैं। 1963 में राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना की गई है। 1963 में राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की स्थापना की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य कृषि उपज का विपणन, प्रसंस्करण एवं भण्डारण करना है। विश्व बैंक की सहायता से राष्ट्रीय बीज परियोजना भी प्रारम्भ की गई, जिसके अन्तर्गत कई बीज निगम बनाये गये हैं।

भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारिता विपणन संघ (नेफेड) एक शीर्ष विपणन संगठन है, जो प्रबन्धन, विपणन एवं कृषि सम्बंधित चुनिन्दा वस्तुओं के आयात निर्यात का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना कृषि वित्त के कार्य हेतु की गई है। कृषि के लिये खाद्य निगम एवं उर्वरक साख गारन्टी निगम, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम आदि भी स्थापित किए गए हैं।

मृदा परीक्षण

मृदा परीक्षण कार्यक्रम के अनतर्गत विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी का परीक्षण सरकारी प्रयोगशालाओं में किया जाता है। इसका उद्देश्य भूमि की उर्वरा शक्ति का पता लगाकर कृषकों को तदुनरूप रासायनिक खादों एवं उत्तम बीजों के प्रयोग की सलाह देना है। वर्तमान समय में इन सरकारी प्रयोशालाओं में प्रतिवर्ष सात लाख नमूनों का परीक्षण किया जाता है। कुछ चलती फिरती प्रयोगशालाएं भी स्थापित की गईं हैं, जो गांव-गांव जाकर मौके पर मिट्टी का परीक्षण करके किसानों को सलाह देतीं हैं।

भूमि संरक्षण

भूमि संरक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत कृषि योग्य भूमि को क्षरण से रोकने तथा ऊबड़-खाबड़ भूमि को समतल बनाकर कृषि योग्य बनाया जाता है। यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात तथा मध्य प्रदेश में तेजी से लागू है।

कृषि शिक्षा एवं अनुसन्धान

सरकार की कृषि नीति के अन्तर्गत कृषि शिक्षा का विस्तार करने के लिये पन्तनगर में पहला कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है। आज कृषि और इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के लिये 4 कृषि विश्वविद्यालय, 39 राज्य कृषि विश्वविद्यालय और इम्फाल में एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। कृषि अनुसन्धान हेतु ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ है, जिसके अन्तर्गत 53 केन्द्रीय संस्थान, 32 राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र, 12 परियोजना निदाशाल 64 अखिल भारतीय समन्वय अनुसन्धान परियोजनायें है।

इसके अतिरिक्त देश में 527 कृषि विज्ञान केन्द्र हैं, जो शिक्षण एवं प्रशिक्षण का कार्य कर रहे हैं। कृषि शिक्षा एवं प्रशिक्षण की गुणवत्ता बनाये रखने के लिये विभिन्न संस्थाओं के कम्प्यूटरीकरण और इन्टरनेट की सुविधा प्रदान की गई है।

कृषि उत्पादन में सुधार

1.उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि

हरित क्रान्ति अथवा भारतीय कृषि में लागू की गई नई विकास विधि का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि देश में फ़सलों के क्षेत्रफल में वृद्धि, कृषि उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि हो गई। विशेषकर गेहूँ, बाजरा, धान, मक्का तथा ज्वार के उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई। जिसके परिणाम स्वरूप खाद्यान्नों में भारत आत्मनिर्भर-सा हो गया। 1951-1952 में देश में खाद्यान्नों का कुल उत्पादन 5.09 करोड़ टन था, जो क्रमशः बढ़कर 2008-2009 में बढ़कर 23.38 करोड़ टन हो गया। इसी तरह प्रति हेक्टेअर उत्पादकता में भी पर्याप्त सुधार हुआ है।

वर्ष 1950-1951 में खाद्यान्नों का उत्पादन 522 किग्रा प्रति हेक्टेअर था, जो बढ़कर 2008-2009 में 1,893 किग्रा प्रति हेक्टेअर हो गया। हाँ, भारत में खाद्यान्न उत्पादनों में कुछ उच्चावचन भी हुआ है, जो बुरे मौसम आदि के कारण रहा जो यह सिद्ध करता है कि देश में कृषि उत्पादन अभी भी मौसम पर निर्भर करता है।

2.कृषि के परम्परागत स्वरूप में परिवर्तन

हरित क्रान्ति के फलस्वरूप खेती के परम्परागत स्वरूप में परिवर्तन हुआ है और खेती व्यवसायिक दृष्टि से की जाने लगी है। जबकि पहले सिर्फ पेट भरने के लिये की जाती थी। देश में गन्ना, कपास, पटसन तथा तिलहनों के उत्पादन में वृद्धि हुई है। कपास का उत्पादन 1960-1961 में 5.6 मिलियन गांठ था, जो बढ़कर 2008-2009 में 27 मिलियन गांठ हो गया। इसी तरह तिलहनों का उत्पादन 1960-1961 में 7 मिलियन टन था, जो बढ़कर 2008-2009 में 28.2 मिलियन टन हो गया। इसी तरह पटसन, गन्ना, आलू तथा मूंगफली आदि व्यवसायिक फ़सलों के उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। वर्तमान समय में देश में बाग़बानी फ़सलों, फलों, सब्जियों तथा फूलों की खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

3.कृषि बचतों में वृद्धि

उन्नतशील बीजों, रासायनिक खादों, उत्तम सिंचाई तथा मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ा है। जिससे कृषकों के पास बचतों की उल्लेखनीय मात्रा में वृद्धि हुई है। जिसको देश के विकास के काम में लाया जा सका है।

4.अग्रगामी तथा प्रतिगामी संबंधों में मजबूती

नवीन प्रौद्योगिकी तथा कृषि के आधुनीकरण ने कृषि तथा उद्योग के परस्पर सम्बन्ध को और भी मजबूत बना दिया है। पारम्परिक रूप में यद्यपि कृषि और उद्योग का अग्रगामी सम्बन्ध पहले से ही प्रगाढ़ था, क्योंकि कृषि क्षेत्र द्वारा उद्योगों को अनेक आगत उपलब्ध कराये जाते हैं। परन्तु इन दोनों में प्रतिगामी सम्बन्ध बहुत ही कमज़ोर था, क्योंकि उद्योग निर्मित वस्तुओं का कृषि में बहुत ही कम उपयोग होता था। परन्तु कृषि के आधुनीकरण के फलस्वरूप अब कृषि में उद्योग निर्मित आगतों, जैसे- कृषि यन्त्र एवं रासायनिक उर्वरक आदि, की मांग में भारी वृद्धि हुई है, जिससे कृषि का प्रतिगामी सम्बन्ध भी सुदृढ़ हुआ है। अन्य शब्दों में कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्र के सम्बन्धों में अधिक मजबूती आई है।

इस तरह स्पष्ट है कि हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश में कृषि आगतों एवं उत्पादन में पर्याप्त सुधार हुआ है। इसके फलस्वरूप कृषक, सरकार तथा जनता सभी में यह विश्वास जाग्रत हो गया है कि भारत कृषि पदार्थों के उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं हो सकता, बल्कि निर्यात भी कर सकता है। विश्लेषण

देश में योजना काल में कृषि के क्षेत्र में पर्याप्त विकास हुआ है। कुल कृषि क्षेत्र बढ़ा है, फ़सल के स्वरूप में परिवर्तन हुआ है, सिंचित क्षेत्र बढ़ा है, रासायनिक खादों के उपयोग में वृद्धि हुई है तथा आधुनिक कृषि यन्त्रों का उपयोग होने लगा है। इन सब बातों के होते हुये भी अभी तक देश में कृषि का विकास उचित स्तर तक नहीं पहुँच पाया है, क्योंकि यहाँ प्रति हेक्टेअर कृषि उत्पादन अन्य विकसित देशों की तुलना में कम है। अभी अनेक कृषि उत्पादों का आयात करना पढ़ता है। क्योंकि उनका उत्पादन मांग की तुलना में कम है। कृषि क्षेत्र का अभी भी एक बढ़ा भाग असिंचित है। कृषि में यन्त्रीकरण का स्तर अभी भी कम है, जिससे उत्पादन लागत अधिक आती है। कृषकों को विभागीय सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलती हैं, जिससे कृषि विकास में बाधा उत्पन्न होती है। अतः इस बात की आवश्यकता है कि कृषि में तकनीकि एवं संस्थागत सुधारों को अधिक कारगर ढंग से लागू कर कृषि क्षेत्र का और अधिक विकास किया जाये।

हरित क्रान्ति का विस्तार

केन्द्रीय बजट 2010-2011 में कृषि क्षेत्र के विकास के लिये बनाई गयी कार्य योजना के पहले घटक में ग्राम सभाओं तथा किसान परिवारों के सक्रिय सहयोग से देश के पूर्वी क्षेत्र बिहार, छत्तीसगढ़, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा में हरित क्रान्ति के विस्तार के लिये 400 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

भारतीय कृषि पर हरित क्रांति का प्रभाव | Harit Kranti Ka Prabhav

देश में हरित क्रान्ति के फलस्वरूप कुछ फ़सलों के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई है, खाद्यान्नो के आयात में कमी आई है, कृषि के परम्परागत स्वरूप में परिवर्तन आया है, फिर भी इस कार्यक्रम में कुछ कमियाँ परिलक्षित होती हैं। हरित क्रान्ति की प्रमुख कमियों एवं समंस्याओं को निम्न रूप में प्रंस्तुत किया जा सकता है-

प्रभाव – हरित क्रान्ति का प्रभाव कुछ विशेष फ़सलों तक ही सीमित रहा, जैसे- गेहूँ, ज्वार, बाजरा। अन्य फ़सलो पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। यहाँ तक कि चावल भी इससे बहुत ही कम प्रभावित हुआ है। व्यापारिक फ़सलें भी इससे अप्रभावित ही हैं।

  • पूंजीवादी कृषि को बढ़ावा – अधिक उपजाऊ किस्म के बीज एक पूंजी-गहन कार्यक्रम हैं, जिसमें उर्वरकों, सिंचाई, कृषि यन्त्रों आदि आगतों पर भारी मात्रा में निवेश करना पड़ता है। भारी निवेश करना छोटे तथा मध्यम श्रेणी के किसानों की क्षमता से बाहर हैं। इस तरह, हरित क्रान्ति से लाभ उन्हीं किसानों को हो रहा है, जिनके पास निजी पम्पिंग सेट, ट्रैक्टर, नलकूप तथा अन्य कृषि यन्त्र हैं। यह सुविधा देश के बड़े किसानों को ही उपलब्ध है। सामान्य किसान इन सुविधाओं से वंचित हैं।
  • संस्थागत सुधारों की आवश्यकता पर बल नहीं – नई विकास विधि में संस्थागत सुधारों की आवश्यकता की सर्वथा अवहेलना की गयी है। संस्थागत परिवर्तनो के अन्तर्गत सबसे महत्वपूर्ण घटक भू-धारण की व्यवस्था है। इसकी सहायता से ही तकनीकी परिवर्तन द्वारा अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। देश में भूमि सुधार कार्यक्रम सफल नहीं रहे हैं तथा लाखों कृषकों को आज भी भू-धारण की निश्चितता नहीं प्रदान की जा सकी है। श्रम-विस्थापन की समस्या – हरित क्रान्ति के अन्तर्गत प्रयुक्त कृषि यन्त्रीकरण के फलस्वरूप श्रम-विस्थापन को बढ़ावा मिला है। ग्रामीण जनसंख्या का रोज़गार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने का यह भी एक कारण है।
  • आय की बढ़ती असमानता – कृषि में तकनीकी परिवर्तनों का ग्रामीण क्षेत्रों में आय-वितरण पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। डॉ॰ वी. के. आर. वी. राव के अनुसार, “यह बात अब सर्वविदित है कि तथाकथित हरित क्रान्ति, जिसने देश मे खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने मे सहायता दी है, के साथ ग्रामीण आय मे असमानता बढ़ी है, बहुत से छोटे किसानों को अपने काश्तकारी अधिकार छोड़ने पड़े हैं और ग्रामीण क्षेत्रों मे सामाजिक और आर्थिक तनाव बढ़े हैं।”
  • आवश्यक सुविधाओं का अभाव – हरित क्रान्ति की सफलता के लिए आवश्यक सुविधाओं यथा- सिंचाई व्यवस्था, कृषि साख, आर्थिक जोत तथा सस्ते आगतों आदि के अभाव में कृषि-विकास के क्षेत्र में वांछित सफलता नहीं प्राप्त हो पा रही है।
  • क्षेत्रीय असन्तुलन – हरित क्रान्ति का प्रभाव पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु आदि राज्यों तक ही सीमित है। इसका प्रभाव सम्पूर्ण देश पर ना फैल पाने के कारण देश का सन्तुलित रूप से विकास नहीं हो पाया। इस तरह, हरित क्रान्ति सीमित रूप से ही सफल रही है।

हरित क्रान्ति की सफलता के लिये सुझाव | Bharat Mein Harit Kranti

  • संस्थागत परिवर्तनों को प्रोत्साहन – हरित क्रान्ति की सफलता के लिए भूमि सुधार कार्यक्रमों को प्रभावी और विस्तृत रूप से लागू किया जाना चाहिए। बटाईदारों को स्वामित्व का अधिकार दिलाया जाना चाहिए। सीमा निर्धारण से प्राप्त अतिरिक्त भूमि को भूमिहीन कृषकों में वितरित किया जाना चाहिए। चकबन्दी का प्रभावी बनाकर जोतों के विभाजन पर प्रभावी रोक लगायी जानी चाहिए।
  • कृषि वित्त की सुविधा – कृषि वित्त की सुविधाएँ बढ़ाते समय छोटे किसानों को रियायती दर पर साख की सुविधा उपलब्ध करायी जानी चाहिए, ताकि वे आवश्यक उन्नत बीज, रासायनिक खाद तथा कृषि उपकरण क्रय कर सकें।
  • रोज़गार के अवसरों में वृद्धि – श्रम प्रधान तकनीकों को अपनाया जाना चाहिए तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बेकारी की समस्या के समाधान के लिए कुटीर एवं ग्राम उद्योगों का तेजी से विस्तार किया जाना चाहिए।
  • सिंचाई के साधनों का विकास – देश में सिंचाई की सुविधाओं का पर्याप्त विकास किया जाना चाहिए, ताकि कृषक अधिक उपज देने वाली किस्मों का पूरा लाभ उठा सकें। इस सन्दर्भ में लघु सिंचाई परियोजनाओं के विस्तार पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • अन्य संरचनात्मक सुधारों का विस्तार – कृषि के विकास के लिये आवश्यक बिजली, परिवहन सहित अन्य संरचनात्मक सुविधाओं का विकास किया जाना चाहिए। तभी हरित क्रान्ति अन्य फ़सलों तथा क्षेत्रों तक फैल सकेगी।
  • हरित क्रान्ति का अन्य फसलों तक फैलाव – हरित क्रान्ति की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि इसका विस्तार चावल तथा अन्य फसलों की खेती तक किया जाये। चावल के साथ दालें, कपास, गन्ना, तिलहन, जूट आदि व्यापारिक फसलों के सम्बंध में भी उत्पादन वृद्धि संतोषजनक नहीं रही है। अतः इन फसलों को भी हरित क्रान्ति के प्रभाव क्षेत्र में शामिल किया जाना चाहिए।
  • छोटे खेत और छोटे किसानों को सम्बद्ध करना – छोटे खेतों तथा छोटे किसानों को भी हरित क्रान्ति से सम्बद्ध करना चाहिए। इसके लिये आवश्यक है कि-
    • भूमि सुधार कार्यक्रमों को शीघ्रता और प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए,
    • छोटे-छोटे किसानों को उन्नत बीज, खाद आदि आवश्यक चीजों को ख़रीदने के लिये उदार शर्तों एवं दरों पर साख सुविधाएँ उपलब्ध करायी जानी चाहिए,
    • साधारण कृषि उपकरणों की ख़रीद के सम्बन्ध में दी गयी सुविधाओं के अतिरिक्त बड़ी-बड़ी फार्म मशीनरी यथा-ट्रैक्टर, हार्वेस्टर आदि को सरकार की ओर से किराए पर दिया जाना चाहिए,
    • बहुत छोटी-छोटी जोतों वाले किसानों को सहकारी खेती को अपनाने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिए।
  • समन्वित फार्म नीति – हरित क्रान्ति की सफलता के लिये समन्वित फार्म नीति अपनायी जानी चाहिए, ताकि फार्म तकनीकि व आगतों के मूल्यों के सम्बन्ध में एक उचित नीति अपनाई जा सके तथा कृषकों को उन्न्तशील बीज, खाद, कीटनाशक तथा कृषि यन्त्र एवं उपकरण उचित मूल्य पर समय पर उपलब्ध हो सकें। इसके अतिरिक्त सरकार को समस्त कृषि उपजों की बिक्री का प्रबन्ध किया जाना चाहिए तथा उचित मूल्य पर कृषि उत्पादों को ख़रीदने की गारन्टी भी देनी चाहिए।
  • नयी राष्ट्रीय कृषि नीति – केन्द्र सरकार ने ‘नयी राष्ट्रीय कृषि नीति’ की घोषणा 28 जुलाई 2000 को की थी। इस नीति में सरकार ने 2020 तक कृषि के क्षेत्र में प्रतिवर्ष 4 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा है। नयी कृषि नीति का वर्णन ‘इन्द्रधनुष क्रान्ति’ के रूप में किया गया है, जिसमें सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देश के कृषि क्षेत्र में विभिन्न क्रान्तियों जैसे- ‘हरित क्रान्ति’ (खाद्यान्न उत्पादन), ‘श्वेत क्रांति’ (दुग्ध उत्पादन), ‘पीली क्रांति’ (तिलहन उत्पादन), ‘नीली क्रांति’ (मत्स्य उत्पादन), ‘लाल क्रांति’ (मांस/टमाटर उत्पादन), ‘सुनहरी क्रांति’ (सेब उत्पादन), ‘भूरी क्रांति’ (उर्वरक उत्पादन), ‘ब्राउन क्रांति’ (गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत), ‘रजत क्रांति’ (अण्डे/मुर्गी) एवं ‘खाद्यान्न श्रंखला क्रंति’ (खाद्यान्न/सब्जी/फलों को सड़ने से बचाना) को एक साथ लेकर चलना होगा, इसी को ‘इन्द्रधनुषी क्रान्ति’ कहा गया है।
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हरित क्रांति pdf | Harit Kranti. Pdf

The Violence of the Green Revolution: Third World Agriculture, Ecology, and Politics (Culture of the Land)

एक समर्पित अनुभववादी, वंदना शिवा भारत में हरित क्रांति के प्रभावों पर नज़र रखती हैं, मोनोकल्चर और वाणिज्यिक कृषि के विनाशकारी प्रभावों की जांच करती हैं और पारिस्थितिक विनाश और गरीबी के बीच सूक्ष्म संबंधों को प्रकट करती हैं।

FAQ | हरित क्रांति | Harit Kranti

Q1. हरित क्रांति संबंधित है

Ans – हरित क्रांति का सम्बन्ध कृषि क्षेत्र से है। अमेरिकी कृषि विज्ञानी नॉर्मन बोरलॉग को हरित क्रांति का जनक माना जाता है। उन्होंने उच्च गुणवत्ता वाले बीज बनाने पर काम किया, जिसके लिए उन्हें बाद में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

Q2. हरित क्रांति की शुरुआत किस देश से हुई

Ans – भारत में, जैसे ही देश ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की, कृषि गुणवत्ता में सुधार के प्रयास शुरू हो गए। हरित क्रांति की शुरुआत 1960 के दशक में मानी जाती है।

Q3. हरित क्रांति का अर्थ बताइए

Ans – हरित क्रांति (Green Revolution) विकासशील देशों में उन्नत किस्मों और उर्वरकों और अन्य रासायनिक आदानों के विस्तारित उपयोग के माध्यम से चावल और गेहूं की पैदावार में वृद्धि के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। हरित क्रांति की मुख्य विशेषताएं बीजों की नई और अधिक उपज देने वाली किस्मों की शुरूआत, कृषि नुकसान को कम करने के लिए उर्वरकों (fertilizers), कीटनाशकों (pesticides) और खरपतवारनाशकों (weedicides) के बढ़ते उपयोग आदि हैं।

Q4. हरित क्रांति किस फसल से संबंधित है

Ans – हरित क्रांति का संबंध खाद्यान्न फसलों के उत्पादन से है। इसका मुख्य प्रभाव गेहूं पर पड़ा। हरित क्रांति के फलस्वरूप गेहूं के उत्पादन में सर्वाधिक वृद्धि परिलक्षित हुई।

Q5. भारत में हरित क्रांति का श्रेय किस वैज्ञानिक को जाता है

Ans – भारत में हरित क्रांति का जनक एम. एस. स्वामीनाथन को कहा जाता है।

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