- चिपको आंदोलन क्या है | Chipko Andolan Kya Hai
- चिपको आंदोलन की शुरुआत कब हुई | Chipko Andolan Ki Shuruaat Kab Hua
- चिपको आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था | Chipko Andolan Ka Mukhya Uddeshya Kya Tha
- चिपको आंदोलन की शुरुआत किसने की थी | Chipko Andolan Ki Shuruaat Kisne Ki Tha
- चिपको आंदोलन किससे संबंधित है | Chipko Andolan Kis Sarbadhik Hai
- चिपको आंदोलन कब हुआ था, चिपको आंदोलन कब हुआ | Chipko Andolan Kab Hua Tha
- चिपको आंदोलन किसने चलाया था | Chipko Andolan Kisne Chalaya Tha
- चिपको आंदोलन का प्रभाव | Chipko Andolan Ka Prabhav
- चिपको आंदोलन पर निबंध, चिपको आंदोलन के बारे में बताइए | Essay on Chipko Andolan
- FAQ | चिपको आंदोलन
चिपको आंदोलन क्या है | Chipko Andolan Kya Hai
पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए पेड़ पौधं का इसमें बड़ा योगदान होता है और इसी पेड़ पौधों को काटने से बचाने के लिए इस अनोखे आंदोलन की शुरुआत की गई थी जिसका नाम दिया गया था चिपको आंदोलन। इसकी शुरुआत मूल रुप से 1970 में हुई थी। इस आंदोलन में आंदोलनकारी पेड़ों से लिपटकर खड़े रहते थे जैसे उन्हें आलिंगन कर रहे हों। उनका यी तरीका इस बात का संदेश देता था कि वे पेड़ों को काटने नहीं देंगे चाहे उन्हें खुद कट जाना पड़े।
जंगल की सुरक्षा की दिशा में नागरिकों की तरफ से उठाया गया ये एक बड़ा कदम था। साल 1970 में बड़ी संख्या में भारत में पेड़ काटे जा रहे थे जिससे लोगों के जीवन पर बड़ा असर पड़ रहा था। इसी का विरोध करने के लिए उत्तराखंड के चमोली गांव के लोगों ने पेड़ों के साथ चिपकना शुरू कर दिटा था ताकि वे उन्हें कटने से बचा सकें। इस आंदोलन में सबसे ज्यादा महिलाओं ने हिस्सा लिया था।
- यह एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली ज़िले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था।
- इस आंदोलन का नाम ‘चिपको’ ‘वृक्षों के आलिंगन’ के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिये उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
- जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिये इस आंदोलन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।
- इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कैसे ज़मीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।
चिपको आंदोलन की शुरुआत कब हुई | Chipko Andolan Ki Shuruaat Kab Hua
चिपको आंदोलन जंगलों और पेड़ों की कटाई से जुड़ा है। इसकी पृष्ठभूमि उत्तराखंड की है, जहां के वनों की सुरक्षा के लिए 1970 के दशक में लोगों ने आंदोलन शुरू किया इस दौरान लोग पेड़ों को गले लगाकर उन्हें कटने से बचाया करते थे। इसे मानक और प्रकृति के बीच के प्रेम का प्रतीक मानते हुए चिपको आंदोलन नाम दिया गया।
26 मार्च 1974 को उत्तराखंड के चमोली जिले में ढाई हजार पेड़ों की नीलामी के बाद ठेकेदार ने मजदूरों को पेड़ काटने के लिए जंगल में भेजा लेकिन उनका सामना रैणी गांव की महिलाओं से हुआ, जो कटाई रोकने के लिए पेड़ों से चिपक गईं। उन्होंने कहा कि पेड़ों का काटने से पहले उन्हें काटा जाएं। उनकी इस निडरता की गूंज पूरे भारत में सुनाई दी।
चिपको आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था | Chipko Andolan Ka Mukhya Uddeshya Kya Tha
साल 1974 में आज ही के दिन चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इस आंदोलन में महिलाएं और पुरुष पेड़ से लिपटकर पेड़ों की रक्षा करते थे।
चिपको आंदोलन की शुरुआत किसने की थी | Chipko Andolan Ki Shuruaat Kisne Ki Tha
यह एक सरकारी आदेश के विरोध में शुरू हुआ था। जंगल की जमीन को एक स्पोर्ट्स कंपनी को दिए जाने का आदेश सरकार ने पास कर दिया था। इस आदेश के बाद कंपनी जंगल के उस हिस्से में आने वाले सारे पेड़ पौधों को काटने जा रही थी जिसके विरोध में ग्रामीणों ने ये विरोध शुरू किया था। ग्रामीणों का सब्र का बांध तब टूट गया जब जनवरी 1974 में सरकार ने अलकनंदा के ऊपर के जंगल में आने वाले ढाई हजार पेड़ों की नीलामी की घोषणा कर दी।
मार्च के महीने में जब गांव की एक लड़की ने जंगल में सरकारी अफसरों की हरकत देखी तो उसने ग्रामीणों को इस बारे में खबर कर दी। इसके बाद बड़ी संख्या में महिलाएं सहित सैकड़ों ग्रामीण अपने-अपने घरों से निकलकर जंगलों की तरफ आए और पेड़ों से चिपककर खड़े हो गए। इस तरह से वे पेड़ों के काटे जाने का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। उन्हें इसके लिए धमकाया भी गया लेकिन उन्होंने पेड़ों से दूर हटने का फैसला नहीं किया।
चिपको आंदोलन किससे संबंधित है | Chipko Andolan Kis Sarbadhik Hai
चिपको आन्दोलन एक पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन था। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य (तब उत्तर प्रदेश का भाग) में किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। यह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1973 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था।
आन्दोलन की शुरुवात 1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी।
कामरेड गोविन्द सिंह रावत ही चिपको आन्दोलन के व्यावहारिक पक्ष थे, जब चिपको की मार व्यापक प्रतिबंधों के रूप में स्वयं चिपको की जन्मस्थली की घाटी पर पड़ी तब कामरेड गोविन्द सिंह रावत ने झपटो-छीनो आन्दोलन को दिशा प्रदान की। चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था
इस आंदोलन के समय जब कोई वृक्ष काटने आता था तो ग्रामीण पेड़ो से चिपक जाते थे ओर पेड़ काटने से बच जाता था
आन्दोलन की तीन गतिविधियां महत्वपूर्ण हैं:
- प्रथम, नाटकों, रैलियों, नाटकों, फिल्मों आदि द्वारा जनता में पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना ।
- दूसरा, पश्चिमी घाट के समृद्ध वनों की करना तथा खाली जमीन पर वृक्षारोपण करना ।
- तीसरा स्थानीय निवासियों को जंगली इंधन के प्रभावी व समुचित प्रयोग हेतु प्रेरित करना ।
इस आंदोलन को पर्याप्त सफलता मिली है । सरकार ने हरे पेड़ों के काटने पर रोक लगा दी है । यह आंदोलन धीरे-धीरे कर्नाटक चारों पहाड़ी जिलों में फैल गया है । इसने तमिलनाडु में पूर्वी के जंगलों के संरक्षण हेतु प्रेरित किया । पश्चिमी घाट के तथा पर्यावरण की रक्षा में इसका महत्वपूर्ण योगदान है ।
चिपको आंदोलन कब हुआ था, चिपको आंदोलन कब हुआ | Chipko Andolan Kab Hua Tha
चिपको आंदोलन की शुरुआत प्रदेश के चमोली जिले में गोपेश्वर नाम के एक स्थान पर की गई थी. आंदोलन साल 1972 में शुरु हुई जंगलों की अंधाधुंध और अवैध कटाई को रोकने के लिए शुरू किया गया. इस आंदोलन में महिलाओं का भी खास योगदान रहा और इस दौरान कई नारे भी मशहूर हुए और आंदोलन का हिस्सा बने।
इस आंदोलन में वनों की कटाई को रोकने के लिए गांव के पुरुष और महिलाएं पेड़ों से लिपट जाते थे और ठेकेदारों को पेड़ नहीं काटने दिया जाता था. जिस समय यह आंदोलन चल रहा था, उस समय केंद्र की राजनीति में भी पर्यावरण एक एजेंडा बन गया थाय इस आन्दोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया।
बता दें कि इस अधिनियम के तहत वन की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना है. कहा जाता है कि चिपको आंदोलन की वजह से साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था. इस विधेयक में हिमालयी क्षेत्रों के वनों को काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया था. चिपको आंदोलन ना सिर्फ उत्तराखंड में बल्कि पूरे देश में फैल गया था और इसका असर दिखने लगा था।
चिपको आंदोलन किसने चलाया था | Chipko Andolan Kisne Chalaya Tha
रैणी गांव से शुरू हुए चिपको आंदोलन का नेतृत्व करने वाली एक महिला थीं, जिनका नाम गौरा देवी था। गौरा देवी को चिपको आंदोलन में शामिल होने वाली पहली महिला माना जाता है, जिन्होंने 27 महिलाओं का नेतृत्व कर मजदूरों को पेड़ काटने से रोका था।
इसी तरह राजस्थान में चिपको आंदोलन का नेतृत्व करने वाली एक महिला थीं। सामाजिक कार्यकर्ता वंदना शिवा की किताब ‘स्टेइंग अलाइव: वीमेन इकोलॉजी एंड सर्वाइवल इन इंडिया’ में चिपको आंदोलन का जिक्र है, जिसमें लिखा गया है कि राजस्थान में बिश्नोई समुदाय के तीन सौ से ज्यादा लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। राजस्थान में अमृता देवी नाम की महिला ने पेड़ों को कटने से बचाने के लिए चिपको आंदोलन का नेतृत्व किया था।
चिपको आंदोलन का प्रभाव | Chipko Andolan Ka Prabhav
उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के वर्षों में यह आंदोलन उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में कर्नाटक, पश्चिम में राजस्थान, पूर्व में बिहार और मध्य भारत में विंध्य तक फैला।
उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आंदोलन पश्चिमी घाट और विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा। साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा।
जिस समय यह आन्दोलन चल रहा था, उस समय केंद्र की राजनीति में भी पर्यावरण एक एजेंडा बन गया था. इस आन्दोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने वन सरंक्षण अधिनियम बनाया. इस अधिनियम के अंतर्गत वनों की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना आता है।
यह चिपको आन्दोलन की देन थी की सन 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने एक विधेयक बनाया जिसमें हिमालयी क्षेत्रो के वनों को काटने पर 15 सालो का प्रतिबंद लगा दिया था. बाद-बाद में चिपको आन्दोलन भारत के पूर्व, मध्य और साउथ के राज्यों में फैला।
चिपको आंदोलन पर निबंध, चिपको आंदोलन के बारे में बताइए | Essay on Chipko Andolan
चिपको आन्दोलन पर्यावरण के संरक्षण के लिए चलाया गया एक आन्दोलन है ।. इसके अंतर्गत पेड़ों के संरक्षण हेतु प्रयास किये गये थे । इसे चिपको आन्दोलन इसलिए कहते हैं कि पेड़ों को कटने से बचाने के लिए महिलाएँ तथा अन्य लोग आन्दोलन के दौरान पेड़ों से चिपक जाते थे ।\
इस आन्दोलन की शुरुआत 1973 में वर्तमान उत्तराखण्ड के गढ़वाल जिले के गाँव रेनी से हुई थी । इसकी पृष्ठभूमि यह है कि गाँव वाले अपने कृषि उपयोग के लिए अंगू वृक्ष (Ash Tree) को काटना चाहते थे, लेकिन जिला प्रशासन ने उन्हें इसकी अनुमति प्रदान नहीं की । लेकिन कुछ ही समय बाद सरकार ने खेल का सामान बनाने वाली एक निजी कम्पनी को इन पेड़ों को काटने की अनुमति प्रदान कर दी ।
जिसका गाँव वालों ने बहुत विरोध किया । जब कम्पनी के ठेकेदार पेड़ काटने के लिए गाँव में आये तो महिलायें पेड़ों से चिपक गयीं तथा कम्पनी के ठेकेदार पेड़ों को नहीं काट सके । इस प्रकार चिपको आन्दोलन की शुरुआत हुई । बाद में यह आन्दोलन उत्तराखंड के समूचे टेहरी गढ़वाल और कुमायूं क्षेत्र में फैल गया ।
इस आन्दोलन में सम्पूर्ण उत्तराखंड में पेड़ों को बचाने के लिए महिलाओं और अन्य लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया । इस आन्दोलन को सुन्दर लाल बहुगुणा ने प्रभावी नेतृत्व प्रदान किया । इस आन्दोलन में ग्रामीण महिलाओं की सक्रिय भागीदारी इस आन्दोलन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता थी ।
इस आन्दोलन की निम्न उपलब्धियाँ महत्वपूर्ण हैं:
- (i) आंदोलन के परिणामस्वरूप सरकार ने यह आदेश निकाला कि समुद्र तल से एक हजार मीटर से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में 15 वर्षों तक पेड़ों की कोई कटाई नहीं की जायेगी । इससे वनों के संरक्षण व विकास में सहायता मिली ।
- (ii) चिपको आन्दोलन शांतिपूर्ण तरीके से लोकहित की पूर्ति का एक प्रमुख उदाहरण है । इसके प्रमुख नेता सुन्दर लाल बहुगुणा गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे । अतः यह आन्दोलन समकालीन युग में गांधीवादी विचारधारा की उपयोगिता को रेखांकित करता है ।
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FAQ | चिपको आंदोलन
Q1. सुंदरलाल बहुगुणा चिपको आंदोलन
Ans – इन्होंने हिमालय की ढलानों पर वृक्षों की रक्षा के लिये चिपको आंदोलन की शुरुआत की।
इसके अलावा इन्हें चिपको का नारा ‘पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है’ गढ़ने के लिये जाना जाता है।
1970 के दशक में चिपको आंदोलन के बाद उन्होंने विश्व में यह संदेश दिया कि पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी तंत्र अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उनका विचार था कि पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को एक साथ चलना चाहिये।
भागीरथी नदी पर टिहरी बाँध के खिलाफ अभियान चलाया, जो विनाशकारी परिणामों वाली एक मेगा परियोजना है। उन्होंने आज़ादी के बाद भारत में 56 दिनों से अधिक समय तक लंबा उपवास किया।
पूरे हिमालयी क्षेत्र पर ध्यान आकर्षित करने के लिये 1980 के दशक की शुरुआत में 4,800 किलोमीटर की कश्मीर से कोहिमा तक की पदयात्रा (पैदल मार्च) की।
उन्हें वर्ष 2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
Q2. गौरा देवी चिपको आंदोलन
Ans – गौरा देवी चिपको आंदोलन का नेतृत्व करते हुए 27 महिलाओं को अपने साथ लेकर जंगल की ओर चल पड़ी। गौरा सहित अन्य 27 महिलाएं भी जंगलों की कटाई को रोकने के लिए पेड़ों से चिपक गई। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों से पेड़ों को काटने से पहले आरी खुद के शरीर पर चलाने को कहा। गौरा देवी और महिलाओं के इस हिम्मती साहस के आगे सरकार को झुकना ही पड़ा और इस प्रकार यह आंदोलन 2400 पेड़ों की कटाई को रोकने में कामयाब हो गया।
इतिहास के पन्नों ने कई महिला क्रांतिकारियों को वह जगह नहीं दी है, जिसकी वह हकदार है। ठीक उसी प्रकार गौरा देवी को भी वह स्थान नहीं मिला है, जो उन्हें मिलना चाहिए। वही उन्हीं के साथी पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा को वह सम्मान और स्थान मिला है। कहीं ना कहीं इसके पीछे पितृसत्ता ही है जो आज भी महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ही तवज्जो देती है।
Q3. चिपको आंदोलन में महिलाओं की भूमिका
Ans – भले ही चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा जैसे लोगों ने चिपको आंदोलन में मुख्य और सक्रिय भूमिका निभाई हो लेकिन देश की महिलाओं ने इस आंदोलन की जमीन तैयार की। इस आंदोलन का सफल बनाया। चिपको आंदोलन में उत्तराखंड की गौरा देवी और राजस्थान की अमृता देवी के अलावा कई अन्य महिलाओं का भी योगदान हैं, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। इनमें गांधी जी की शिष्या मीरा बेन, सरला बेन, बिमला बेन, हिमा देवी, गंगा देवी, बचना देवी, इतवारी देवी, छमुन देवी का नाम शामिल है।
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