पर्यावरण क्या है | Paryavaran Kya Hai

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पर्यावरण किसे कहते हैं | Paryavaran Kya Hai Hindi

पर्यावरण फ्रेंच शब्द ‘Environ’ से उत्पन्न हुआ है और environ का शाब्दिक अर्थ है घिरा हुआ अथवा आवृत्त। यह जैविक और अजैविक अवयव का ऐसा समिश्रण है, जो किसी भी जीव को अनेक रूपों से प्रभावित कर सकता है। अब प्रश्न यह उठता है कि कौन किसे आवृत किए हुए है। इसका उत्तर है समस्त जीवधारियों को अजैविक या भौतिक पदार्थ घेरे हुए हैं। अर्थात हम जीवधारियों के चारों ओर जो आवरण है उसे पर्यावरण कहते हैं।

पर्यावरण की विशेषताएं | Characteristics of Environment

  • जैविक (Biotic) तथा अजैविक (Abiotic) तत्व जब जुड़ते हैं तो यही योग पर्यावरण (Environment) कहलाता है।
  • पर्यावरण के मुख्य तत्वों में जैव विविधता और ऊर्जा आते है। स्थान और समय का परिवर्तन पर्यावरण में होता रहता है।
  • जैविक और अजैविक पदार्थों के कार्यकारी संबंधों पर ही पर्यावरण का आधार स्थित होता है। जबकि इसकी कार्यात्मक की निर्भरता ऊर्जा के संचार पर होती है। 
  • पर्यावरण के अंदर ही जैविक पदार्थ उत्पन्न होते हैं, जिनका कार्य अलग स्थानों पर अलग-अलग ही होता है। मुख्यत: पर्यावरण सामान्य परिस्थिति को संतुलित करने की ओर ही अग्रसर होता है।
  • इसे एक बंद तंत्र भी कह सकते हैं। इन सभी के अंतर्गत प्रकृति का पर्यावरण तंत्र नियंत्रित होता है। तब इस नियंत्रक क्रियाविधि को होमियोस्टैटिक क्रिया विधि के नाम से जाना जाता है। इसी से यह नियंत्रण में रहता है।

पर्यावरण की परिभाषा, पर्यावरण किसे कहते हैं उदाहरण सहित | Definition of Environment in Hindi

हमारे आस पास पाए जाने वाले सभी वस्तुएँ पेङ-पौधे, जीव जंतु, नदी, तालाब, हवा, मिट्टी, तथा मनुष्य एवं उसके क्रियाएँ इन सभी के समूह को पर्यावरण (Environment) कहते हैं।

पर्यावरण वह परिवृत्ति है जो मानव को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उसके जीवन एवं क्रियाओं पर प्रभाव डालती है।

  • फिटिंग के अनुसार, ’’जीवों के पारिस्थितिकी का योग पर्यावरण है अर्थात् जीवन की पारिस्थितिकी के समस्त तथ्य मिलकर पर्यावरण कहलाते हैं।’’
  • टाॅसले के अनुसार, ’’प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीव रहते हैं, पर्यावरण कहलाता है।’’
  • सी.सी. पाई के अनुसार, ’’मनुष्य एक विशेष स्थान पर विशेष समय पर जिन सम्पूर्ण परिस्थितियों से घिरा हुआ है इसे पर्यावरण कहा जाता है।’’
  • बोरिंग के अनुसार, ’’एक व्यक्ति के पर्यावरण में वह सब कुछ सम्मिलित किया जाता है जो उसके जन्म से मृत्यु पर्यंन्त प्रभावित करता है।’’
  • हर्सकोविट्स के अनुसार, ’’पर्यावरण उन सभी बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है जो कि प्राणी के जीवन और विकास पर प्रभाव डालते है।’’
  • मैकाइवर के अनुसार, ’’पृथ्वी का धरातल और उसकी सारी प्राकृतिक दशाएँ- प्राकृतिक संसाधन, भूमि, जल, पर्वत, मैदान, खनिज पदार्थ, पौधे, पशु तथा सम्पूर्ण प्राकृतिक शक्तियाँ जो कि पृथ्वी पर विद्यमान होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं, भौगोलिक पर्यावरण के अन्तर्गत आती हैं।’’
  • कोश के अनुसार, ’’चारों तरफ की उन बाहरी दशाओं का सम्पूर्ण योग, उसके अन्दर एक जीव अथवा समुदाय रहता है या कोई वस्तु उपस्थित रहती है, पर्यावरण कहलाता है।’’
  • एनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ ब्रिटेनिका के अनुसार, ’’पर्यावरण उन सभी बाह्य प्रभावों का समूह है जो जीवों को भौतिक एवं जैविक शक्ति से प्रभावित करते रहते हैं तथा प्रत्येक जीव को आवृत्त किये जाते हैं।’’
  • डेविज के अनुसार, ’’मनुष्य के सम्बन्ध में पर्यावरण से अभिप्राय भूतल पर मानव के चारों ओर फैले उन सभी भौतिक स्वरूपों से है। जिसके वह निरन्तर प्रभावित होते रहते हैं।’’
  • गिलबर्ट के अनुसार, ’’वातावरण उन समाग्रता का नाम है, जो किसी वस्तु को घेरे रहते है तथा उसे प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है।’’
  • निकोलस के अनुसार, ’’पर्यावरण उन सभी बाहरी दशाओं तथा प्रभावों का योग होता है जो प्रत्येक प्राणी के जीवन विकास पर प्रभाव डालता है।’’
  • जे. एस. राॅस के अनुसार, ’’पर्यावरण एक बाहरी शक्ति है, जो हमें प्रभावित करती है।
  • डडले स्टेम्प के अनुसार, ’’पर्यावरण प्रभावों का ऐसा योग है जो किसी जीव के विकास एवं प्रकृति को प्रभावित तथा निर्धारित करता है।’’

पर्यावरण के प्रकार | Paryavaran Ke Prakar

पर्यावरण को जैविक और भौतिक दोनों ही संकल्पना माना जाता है। इस कारण इसके अंतर्गत मानव जनित पर्यावरण को भी रखा जाता है, इसमें केवल प्राकृतिक पर्यावरण ही नहीं जोड़ा जाता है। यह मानव जनित पर्यावरण हैं – सामाजिक व सांस्कृतिक पर्यावरण।

मुख्यत: पर्यावरण के तीन भाग हैं-

  • प्राकृतिक पर्यावरण
  • मानव निर्मित पर्यावरण
  • भौतिक पर्यावरण
  • जैविक पर्यावरण

प्राकृतिक पर्यावरण से आप क्या समझते हैं | Prakirtik Paryavaran Se Aap Kya Samajhte

प्राकृतिक पर्यावरण में सभी जैविक और अजैविक तत्व मौजूद है, जो पृथ्वी पर प्रकृति स्वरूप मिलते हैं। यही आधार है कि प्राकृतिक पर्यावरण दो भागों में बांटा गया है।

प्रकार- 1. जैविक (Biotic) 2. अजैविक (Abiotic)

जैविक तत्व सूक्ष्म जीव, जंतु और पौधे प्रायोगिक है तथा अजैविक उत्सर्जन, ऊर्जा, जल, वायुमंडल की गैस, वायु, अग्नि और मृदा तथा गुरुत्वाकर्षण इसके अंतर्गत आते हैं।

  • इसके अन्तर्गत पर्यावरण का वह हिस्सा आता है जो प्रकृति हमें प्रदान करती हैं।
  • मानव को प्रभावित करने वाली प्राकृतिक शक्तियों, प्रक्रियाओं तथा तत्त्वों को प्राकृतिक वातावरण में समाहित किया जाता है। इन शक्तियों के द्वारा पृथ्वी पर अनेक वातावरणीय तत्त्व उत्पन्न होते हैं जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव मानवीय क्रियाकलापों को प्रभावित करता है।
  • इसके अन्तर्गत जैविक एवं अजैविक दोनों परिस्थितियाँ सम्मिलित है।
  • जैविक तत्त्वों में पेङ-पौधे, सूक्ष्म जीव, जीव-जंतु, शैवाल अपघटक, प्राकृतिक वनस्पति, मनुष्य आते है।
  • अजैविक तत्त्वों में जल, तापमान, हवा, तालाब, नदी, महासागर, पहाङ, झील, वन, रेगिस्तान, ऊर्जा, उच्चावच, घास के मैदान, उत्सर्जन, मिट्टी, वायु, अग्नि, ऊष्मा इत्यादि।

मानव निर्मित पर्यावरण | Manav Nirmit Paryavaran

मानव द्वारा निर्मित पर्यावरण अर्थात ऐसा पर्यावरण जो मानव ने स्वयं निर्मित किए हैं, जिसका रूप कृत्रिम है। उदाहरण के लिए औद्योगिक शहर अंतरिक्ष स्टेशन कृषि के क्षेत्र यह सभी मानव द्वारा निर्मित कृत्रिम पर्यावरण है। जनसंख्या का बढ़ना और आर्थिक विकास के प्रभाव के कारण मानव निर्मित पर्यावरण का क्षेत्र लगातार अपने स्थान में वृद्धि कर रहा है, यह लगातार बढ़ता जा रहा है।

  • इसके अन्तर्गत मानव द्वारा निर्मित वस्तु आती है।
  • मानव द्वारा अपने पौरुष, ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी, उद्यम, कौशल और कल्पना शक्ति के बल पर भौतिक पर्यावरण के साथ क्रिया कर जिस परिवेश का निर्माण किया जाता है, वह मानव निर्मित पर्यावरण कहलाता है।
  • इसके अन्तर्गत मानव की परस्पर क्रियाएँ, उनकी गतिविधियाँ एवं उनके द्वारा बनाई गई रचनाएँ सम्मिलित हैं।
  • इसके अन्तर्गत सामाजिक मान्यताएँ, संस्थाएँ, लोकरीतियाँ, रीति-रिवाज, पुलिस, कानून, सरकार, व्यवसाय, उद्योग, राजनीतिक-सामाजिक-शैक्षणिक संस्थाएँ, अधिवास, कारखाने, यातायात के साधन, वन, उद्यान, श्मशान, कब्रिस्तान, मनोरंजन स्थल, शहर, कस्बा, खेत, कृत्रिम झील, बांध, इमारतें, सङक, पुल, पार्क, अन्तरिक्ष स्टेशन आते है।

भौतिक पर्यावरण | Bhautik Paryavaran

भौतिक पर्यावरण में उच्चावच, संरचना, जलवायु, मिट्टी, वनस्पति तथा जीव-जंतु सम्मलित होते हैं। सांस्कृतिक या मानवीय पर्यावरण में समस्त मानवीय क्रियाओं, दशाओं तथा सांस्कृतिक भूदृश्यों को सम्मिलित किया जाता है। पर्यावरण किसी क्षेत्र विशेष की भौतिक व जैविक स्थिति या परिवेश जो किसी जीव या प्रजाति को प्रभावित करती हो।

  • प्रकृति से बनाये गये कारक जिन पर प्रकृति का सीधा नियन्त्रण है।
  • इसमें मानव का कोई हस्तक्षेप नहीं है।
  • इसके अन्तर्गत जलमण्डल, स्थलमण्डल और वायुमण्डल का अध्ययन किया जाता है।
  • स्थलरूप, जलीय भाग, जलवायु, मृदा, शैल तथा खनिज पदार्थ आदि का भी इसमें अध्ययन किया जाता है।

जैविक पर्यावरण | Jaivik Paryavaran

सामाजिक पर्यावरण (Social Environment) के अंतर्गत सांस्कृतिक मूल्य और मान्यताओं का अपना सम्मिलन है। यहां इस धरती पर भाषा, धर्म, रीति-रिवाजों और मानव की जीवन शैली इन सभी के आधार पर ही सांस्कृतिक पर्यावरण के गठन व निर्माण की रचना होती है।

  • जैविक पर्यावरण की उत्पत्ति मानव और जीव-जन्तुओं के द्वारा हुई है।
  • मानव एक सामाजिक प्राणी है जिस कारण वह सामाजिक, भौतिक तथा आर्थिक गतिविधियों से जुङा रहता है। इसमें समस्त जीव प्रणाली शामिल होते हैं। इन सब के बीच के संबंध को परिस्थितिकी कहते हैं जो कि संतुलन बनाए रखने की प्रक्रिया है।
  • इसमें पेङ-पौधे, जन्तु, सूक्ष्म जीव, मानव आदि का अध्ययन किया जाता है।

पर्यावरण प्रदूषण क्या है | Paryavaran Pradushan Kya Hai

पर्यावरण के किसी भी घटक में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन, जिससे जीव जगत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण प्रदूषण में मानव की विकास प्रक्रिया, औद्योगिकीकरण तथा नगरीकरण आदि का महत्वपूर्ण योगदान है। पर्यावरणीय घटकों के आधार पर पर्यावरणीय प्रदूषण को भी ध्वनि, जल, वायु एवं मृदा प्रदूषण आदि में बाँटा जाता है ।

सभी जीव अपनी वृद्धि एवं विकास तथा अपने जीवन चक्र को चलाने के लिए संतुलित पर्यावरण पर निर्भर करते हैं । संतुलित पर्यावरण से तात्पर्य एक ऐसे  पर्यावरण से है, जिसमें प्रत्येक घटक एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में उपस्थित होता है ।

परंतु कभी-कभी मानवीय या अन्य कारणों से पर्यावरण में एक अथवा अनेक घटकों की मात्रा या तो आवश्यकता से बहुत अधिक बढ़ जाती है अथवा पर्यावरण में हानिकारक घटकों का प्रवेश हो जाता है। इस स्थिति में पर्यावरण दूषित हो जाता है तथा जीव समुदाय के लिए किसी न किसी रूप में हानिकारक सिद्ध होता है। पर्यावरण में इस अनचाहे परिवर्तन को ही ‘पर्यावरणीय प्रदूषण’ कहते हैं।

अनेक वैज्ञानिकों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण को निम्न प्रकार से परिभाषित किया। 

  • प्राकृतिक अथवा कृत्रिम क्रियाओं से हानिकारक अनावश्यक तत्वों का हमारे पर्यावरण में उपस्थित होना पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है। 
  • अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी केंद्र के अनुसार वायु जल तथा पृथ्वी के भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुणों में एवं अवांछनीय परिवर्तन जिससे मनुष्य अन्य जीवो प्राकृतिक संसाधनों को हानि हो या हानि होने की संभावना हो पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है। 

पर्यावरण प्रदूषण के कारण और उपाय, पर्यावरण प्रदूषण के कारण और निवारण pdf | Paryavaran Pradushan Ke Karan or Upay

पर्यावरण प्रदूषण के कारण और उपाय के बारे में जानने के लिए, यह जानना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न प्रकार पर्यावरण प्रदूषण क्या हैं। यहाँ विभिन्न प्रकारों के पर्यावरण प्रदूषण के कारण और उपाय बारे में संक्षेप में चर्चा करते हैं ।

प्रदूषण के प्रकार | Paryavaran Pradushan Ke Prakar

पर्यावरणीय घटकों के आधार पर पर्यावरणीय प्रदूषण को भी मृदा, वायु, जल एवं ध्वनि प्रदूषण आदि में बाँटा जाता है । प्रदूषण को प्रदूषण को कई प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है। जो निम्न प्रकार है। 

  • वायु प्रदूषण
  • जल प्रदूषण
  • मृदा प्रदूषण 
  • जल प्रदूषण

वायु प्रदूषण | Vayu Pradushan

शुद्ध वायु में हानिकारक पदार्थों अथवा विषैली गैस, सूक्ष्म जीव, कार्बन डाइऑक्साइड का मिश्रण वायु प्रदूषण कहलाता है। वायु प्रदूषण एक बहुत विकट परिस्थितियों में से एक है। 

वायु प्रदुषण के कारण ओजोन परत को भी बहुत नुकसान हो रहा है। जिससे सूर्य से आने वाली हानिकारक परबेंगनी प्रकाश किरणे सीधी धरती पर गिर रही है। 

वायु प्रदुषण बढ़ने के कारण :- वायु प्रदुषण बढ़ने के निम्न कारण है। 

  • वायु प्रदुषण बढ़ने का मुख्य कारण पेड़ों को कटाई है। 
  • केमिकल कम्पनी द्धारा भी वायु प्रदुषण बढ़ता है। 
  • गाड़ी वाहनों में होने वाले ईंधनों के कारण भी वायु प्रदुषण बढ़ता है। 
  • बड़े बड़े कारखानो से निकलने वाले धुएं से भी वायु प्रदुषण बहुत अधिक बढ़ता है। 
  • बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड के कारण

 पेड़ कटाई :- पेड़ अपने पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण का एक बहुत महत्वपूर्ण भाग है। पेड़ हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के संतुलन को बनाए रखते हैं। लेकिन पेड़ की कटाई अधिक होने पर है वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक हो गई है। जिसके कारण वायु दूषित हो रही है। और नए-नए रोग उत्पन्न हो रहे हैं।

केमिकल कंपनियां :- केमिकल कंपनियां जब चालू रहती है तो इनके द्वारा हो रहे अनेक केमिकलों के शोध के कारण शुद्ध वातावरण में अनेक हानिकारक गैस फैल जाती हैं। जिसके कारण वायु प्रदूषित होती है।

गाड़ियों के धुएं के कारण :- आज के समय में गाड़ियों की संख्या तथा वाहनों की संख्या बहुत अधिक हो गई है। जिसकी वजह से इंधन का बहुत अधिक उपयोग होता है। वाहनों में ईंधन के उपयोग के बाद जो गाड़ियों से धुआं निकलता है वह वायु को दुषित करता है। उस धुए में अनेक हानिकारक केमिकल गैस होती हैं जिसके कारण वायु प्रदूषण होता है। 

वायु प्रदूषण के दुष्परिणाम :- वायु प्रदूषण के अनेक दुष्परिणाम हैं जो निम्नलिखित हैं। 

  • वायु प्रदूषण की वजह से शुद्ध वातावरण में अनेक रोग जन्म लेते हैं। जिसकी वजह से मनुष्यों के साथ साथ सभी प्रकार के पक्षी और प्राणियों पर विद्युत प्रभाव पड़ता है। 
  • वायु प्रदूषण की वजह से पक्षियों तथा अन्य जीवो की मृत्यु तक भी हो जाती है। 
  • वायु प्रदूषण की वजह से सांस लेने में तकलीफ होने वाले व्यक्ति को भी अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 
  • वायु प्रदूषण की वजह से ओजोन परत को भी नुकसान होता है। 
  • कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक होने पर वायु प्रदूषण होता है जिसके कारण हरित गृह प्रभाव में वृद्धि होती है। 
  • वायु प्रदूषण के कारण फसलों को भी नुकसान होता है। 

वायु प्रदूषण को रोकने के उपाय :- वायु प्रदूषण को रोकने के निम्न उपाय हैं। 

  • वायु प्रदूषण को रोकने के लिए हमें पेड़ों की कटाई पर पूर्ण तरह रोक लगानी होगी। जिससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का संतुलन बना रहे और वायु प्रदूषण को रोका जा सके। 
  • हमें अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाकर भी वायु प्रदूषण को रोक सकते हैं। 
  • पेट्रोल डीजल से चलने वाले वाहनों को कम उपयोग में ले। तथा उनके स्थान पर है सीएनजी गैस से चलने वाले वाहन अथवा इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग करना। क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों से निकलने वाला गैस पेट्रोल तथा डीजल से चलने वाले वाहनों से निकलने वाले गैस की अपेक्षा कम हानिकारक होता है। 
  • केमिकल कंपनियों के लिए सभी देशों की सरकार को इस विषय पर चर्चा करके सही कदम उठाना चाहिए। 

जल प्रदूषण | Jal Pradushan

शुद्ध जल में अनेक कारणों से उसमें अकार्बनिक तथा कार्बनिक और हानिकारक तत्वों की मौजूदगी जल प्रदूषण कहलाती है। 

वर्तमान समय में पूरे विश्व में शुद्ध पीने योग्य जल का संकट बढ़ता जा रहा है। क्योंकि जल प्रदूषण बहुत अधिक हो रहा है। 

आने वाले समय में अगर जल प्रदूषण ऐसे ही बढ़ता रहा तो पूरे विश्व के सामने जल एक बहुत बड़ा संकट होगा। 

जल प्रदूषण के कारण :- जल का प्रदूषण कई कारकों तथा स्रोतों के कारण होता है। जल का प्रदूषण प्रकृति तथा मानवीय स्रोत से भी होता है। जल प्रदूषण के कारण निम्न है। 

  • घरों में निकलने वाला कचरा तथा मल सही स्थानों में न छोड़ने की बजाए उन्हें शुद्ध नदियों जलाशयों झीलो में छोड़ दिया जाता है। जिससे शुद्ध जल प्रदूषित हो जाता है। 
  • शहरों की जनसंख्या तथा शहरी करण तेजी से बढ़ रहा है जिससे यह समस्या गंभीर रूप धारण करती जा रही है। 
  • जनसंख्या जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे औद्योगिकरण भी बढ़ता जा रहा है। उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट तथा अशुद्ध जल सीधा नदियों तथा जलाशयों में नालो द्वारा छोड़ जाता है। जिसके कारण जल प्रदूषण बढ़ रहा है। 
  • फसलों के अंदर कीटों को मारने के लिए कृत्रिम कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। जो वर्षा के पानी के साथ बहकर तालाबों में आ जाता है। यह कीटनाशक इतने विषैले होते हैं कि इनकी कम मात्रा भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। 
  • बड़े-बड़े महासागरों में खनिज तेल के रिसाव से जल की सतह पर तेल की परत बन जाती है जिससे जलीय जीवो का जीवन संकट में आ जाता है और उनकी मृत्यु हो जाती है। जिससे जल प्रदूषण होता है। 

जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव :- जल प्रदूषण कई प्रकार से हानिकारक होता है इसके कुछ दुष्प्रभाव निम्न प्रकार हैं। 

  • प्रदूषित जल के उपयोग से अनेक रोग होते हैं। जैसे कि टाइफाइड, अतिसार, पीलिया, इत्यादि।
  • औद्योगिक कचरे से युक्त जल गुर्दे तथा मस्तिष्क संबंधी बीमारियां उत्पन्न करता है।  
  • जल प्रदूषण के कारण जलीय जीवो को बहुत अधिक हानि होती है। 

 जल प्रदूषण को रोकने के उपाय :- जल प्रदूषण पर नियंत्रण करने के लिए उपाय हैं। 

  • शहरों के घरों से निकलने वाले कचरे तथा मल का सही स्थान पर निपटारा करना। 
  • पारिस्थितिक तंत्र का स्थायीकरण करना। 
  • उद्योगों द्वारा निकलने वाले अशुद्ध जल तथा अपशिष्ट पदार्थों का पुनः उपयोग अथवा पुनर्चक्रण करना। 
  • समय के अनुसार तालाबों तथा जलाशयों की गुणवत्ता की जांच करना। 

इत्यादि करके हम जल प्रदूषण को रोक सकते हैं। 

मृदा प्रदूषण | Soil Pradushan In Hindi

भूमि की ऊपरी सतह को मृदा कहते हैं। मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों में ऐसा परिवर्तन जिसके कारण मनुष्य तथा अन्य जीवों पर उसका दुष्प्रभाव पड़ता है उसे मृदा प्रदूषण कहते हैं। 

मृदा प्रदूषण के कारण :- मृदा प्रदूषण के निम्न कारण है। 

  • शहरों में घरेलू कचरे का निस्तारण सही स्थान पर नहीं होता है। उन्हें यूं ही घरों के आसपास फेंक दिया जाता है जिसके कारण मृदा प्रदूषण प्रदूषण होता है। 
  • औद्योगिक कचरे के कारण भी मृदा प्रदूषण होता है। 
  • मृदा प्रदूषण का एक मुख्य कारण प्लास्टिक है। प्लास्टिक के कारणे होने वाला मृदा प्रदूषण एक बहुत बड़ी विकट समस्या है। 
  • खुले में शौच करने पर मृदा प्रदूषण होता है। 
  • फसलों में कीटों को मारने के लिए उपयोग होने वाले हानिकारक कीटनाशकों से भी मृदा प्रदूषण होता है। 

 मृदा प्रदूषण के दुष्परिणाम :- मृदा प्रदूषण के निम्न दुष्परिणाम है। 

  • मृदा प्रदूषण के कारण अनेक रोग जन्म लेते हैं। 
  • धूल उड़ने के कारण उससे एलर्जी तथा दमा व अन्य प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। 
  • मृदा प्रदूषण के कारण है मृदा में अनेक कीटाणु तथा बैक्टीरिया वह कॉकरोच पनपने लगते हैं। 
  • मृदा प्रदूषण के कारण भूमि की उर्वरक क्षमता कम होने लगती है। 

मृदा प्रदूषण को रोकने के उपाय :- मृदा प्रदूषण को रोकने के नियम उपाय है। 

  • औद्योगिक तथा घरेलू कचरे का सही स्थान पर निस्तारण करके। 
  • किसी भी उद्योग को लगाने से पहले उससे निकलने वाले अपशिष्ट का सही निस्तारण करके। 
  • स्वच्छ शौचालयों का निर्माण करके। 
  • कृषि के क्षेत्र में कीटनाशकों के स्थान पर जैविक नियंत्रण को प्रोत्साहन देकर। 

इत्यादि से हम मृदा प्रदूषण को रोक सकते हैं। 

ध्वनि प्रदूषण | Dhwani Pradushan

अनावश्यक तथा अनिच्छापूर्ण ध्वनि जिससे वातावरण में हानिकारक प्रभाव होते हैं ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। 

ध्वनि की तीव्रता का मापन डेसीबल में किया जाता है। 

ध्वनि को मापने वाला यंत्र ध्वनि मापक यंत्र या लार्म बैरोमीटर कहलाता है।  

ध्वनि की आवर्ती को हर्ट्ज़ में मापते हैं। 

सामान्य मनुष्य की सुनने की क्षमता 20 से 20,000 हर्ट्ज तक होती है। 

ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारण :- ध्वनि प्रदूषण विभिन्न कारणों से होता है जो निम्न प्रकार हैं। 

  • विभिन्न कारखानों में उत्पादन बढ़ रहा है। जिसके साथ साथ हैं मशीनों के द्वारा उत्पन्न शोर ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है। 
  • वायुयान द्वारा उत्पन्न होने वाले शोर से ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है। वायु का शोर इतना तीव्र होता है कि हवाई अड्डे के पास इमारतों में दरारें तक पड़ जाती हैं। 
  • बढ़ते हुए मोटर वाहनों का उपयोग ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है। 
  • आजकल घरों में तथा शहरों में लाउडस्पीकर का प्रयोग किया जाता है जिससे ध्वनि प्रदूषण में काफी वृद्धि होती है। 
  • विभिन्न फैक्ट्री में तथा घरों में जनरेटर का उपयोग किया जाता है जिससे काफी ध्वनि प्रदूषण फैलता है। 

ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव :- ध्वनि प्रदूषण के अनेक दुष्प्रभाव हैं। 

  • मनुष्य की श्रवण शक्ति कम हो जाती है। 
  • मनुष्य के स्वभाव में चिड़चिड़ापन हो जाता है। 
  • ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्य को भूख कम लगने लगती है। 
  • गर्भस्थ शिशुओं की अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से गर्भपात द्वारा मौत भी हो सकती है। 
  • धोनी प्रदूषण से अनिद्रा की समस्या होने लगती है। 
  • रक्तचाप बढ़ने लगता है। 

ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपाय :- ध्वनि प्रदूषण को रोकने के निम्न उपाय हैं। 

  • कारखानों में होने वाले ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करके तथा इनको शहरों से बाहर निर्मित किया जाना चाहिए।
  • एयरपोर्ट का निर्माण शहरों से दूर करना चाहिए। 
  • अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए। 
  • लाउडस्पीकर तथा जनरेटर का प्रयोग बंद किए जाने चाहिए। 

इत्यादि से ध्वनि प्रदूषण को रोका जा सकता है। 

पर्यावरण के घटक | Paryavaran Ke Ghatak

पर्यावरण के तीन घटक होते हैं –

  1. जैविक घटक
  2. अजैविक घटक
  3. ऊर्जा घटक

जैविक घटक | Jaivik Ghatak

जैविक घटक में सभी सजीव प्राणी आते है। विभिन्न जीव-जन्तु और पशु, मनुष्य के आर्थिक कार्यों को प्रभावित करते हैं। जन्तु अपनी आवश्यकतानुसार प्राकृतिक वातावरण से अनुकूलन कर लेते हैं या अनुकूल वातावरण में प्रवास कर जाते हैं, फिर भी इन पर पर्यावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव दिखता है। समान दशाओं वाले वातारण के प्रदेशों में जन्तुओं में भिन्नता पायी जाती है, यथा – थार व अरब के रेगिस्तान में पाये जाने वाले ऊँट भिन्नता रखते हैं।

पृथ्वी पर जीव-जन्तुओं का वितरण वनस्पति की उपलब्धता के अनुसार है जिसको जलवायु, मृदा, उच्चावच आदि तत्त्व नियंत्रित करते हैं। प्रकृति के प्रत्येक जीवधारी एक-दूसरे को किसी न किसी तरह से प्रभावित करते है। ये जैविक घटक पूर्णतः अपने आप पर निर्भर नहीं रहते है अपने अस्तित्व के लिए इन्हें दूसरों पर आश्रित रहना होता है। ये परस्पर एक वर्ग के सदस्य के रूप में व्यवहार करते हैं, यथा – भोजन, वृद्धि, गति इत्यादि।

जैविक घटक तीन प्रकार के होते हैं –

  1. उत्पादक
  2. उपभोक्ता
  3. अपघटक।

जैविक घटक के उदाहरण – Jaivik Ghatak Ke Udaharan

  • जीव-जंतु
  • पेङ-पौधे
  • शैवाल
  • अपघटक
  • वनस्पति
  • मानव
  • सूक्ष्म जीव
  • परजीवी।

अजैविक घटक | Ajaivik Ghatak

  • अजैविक घटक में सभी निर्जीव प्राणी आते हैं।
  • भौतिक कारक – तापमान, वायुभार, आर्द्रता, हवा, वर्षा, ऊर्जा, जलवायु, ज्वालामुखी, भूकम्प, बाढ़, सूर्य, प्रकाश, मृदा, वायुमण्डल।
  • कार्बनिक कारक – प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, यूरिया, ह्यूमस, लिपिड।
  • अकार्बनिक कारक – जल, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन हाइड्रोजन, अमोनिया, फाॅस्फेट, पोटेशियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फाॅस्फोरस, खनिज लवण, चट्टान, मिट्टी आदि।
  • महासागर – सागर, नदी, झील, झरना, तालाब, समुद्र, भूमिगत जल, हिमानी या ग्लेशियर।
  • महाद्वीप – पहाङ, मैदान, मरुस्थल, पर्वत, पठार, दलदल, वन।

ऊर्जा घटक | Urja Ghatak

  • ऊर्जा पर्यावरण का ऐसा महत्त्वपूर्ण घटक है जिसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सजीव प्राणियों के प्रजनन, भरण-पोषण, पुर्नउत्पादन के लिए ऊर्जा बहुत ही आवश्यक है।
  • ऊर्जा घटक दो प्रकार की होती है – सौर ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा।

विश्व पर्यावरण दिवस | Vishv Paryavaran Divas

हमारी धरती, जनजीवन को सुरक्षित रखने के लिए पर्यावरण का सुरक्षित रहना बहुत जरूरी है। विश्व के देश आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन इस राह में दिनों दिन दुनियाभर में ऐसी चीजों का इस्तेमाल बढ़ गया है और इस तरह से लोग जीवन जी रहे हैं, जिससे पर्यावरण खतरे में हैं। इंसान और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है। प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं। ऐसे में प्रकृति के साथ इंसानों को तालमेल बिठाना होता है।

लेकिन लगातार वातावरण दूषित हो रहा है, जिससे कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं, जो हमारे जनजीवन को तो प्रभावित कर ही रही हैं, साथ ही कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की भी वजह बन रही हैं। सुखी स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है। इसी उद्देश्य से हर साल विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन लोगों को पर्यावरण के प्रति सचेत किया जाता है और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

पहली बार पर्यावरण दिवस की शुरुआत 1972 में हुई थी। इस दिन की नींव संयुक्त राष्ट्र संघ ने 5 जून 1972 को रखी थी। इसी के बाद से हर साल लगातार 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा।

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पर्यावरण पर निबंध, पर्यावरण पर निबंध 100 शब्द | Essay On Environment 100 Words in Hindi

पर्यावरण पृथ्वी का प्राकृतिक परिवेश है जो किसी जीव को जीवित रहने में सक्षम बनाता है। फ्रांसीसी शब्द ‘एनवायरन’ जिसका अर्थ है घेरना, पर्यावरण शब्द का व्युत्पन्न है। इसमें मनुष्य, पौधे और जानवर जैसे जीवित प्राणी शामिल हैं। वायु, जल और भूमि निर्जीव हैं। उनकी कार्यप्रणाली प्रकृति द्वारा इस तरह से डिजाइन की गई है कि सब कुछ एक दूसरे पर निर्भर है। मनुष्य सभी प्राणियों में सबसे प्रभावशाली प्राणी है जो पृथ्वी के सभी प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हो सकता है। उसे सांस लेने के लिए हवा की आवश्यकता होती है। न केवल मनुष्य बल्कि पौधों और जानवरों को भी सांस लेने के लिए हवा की आवश्यकता होती है। वायु के बिना पृथ्वी पर जीवन नहीं होगा। पर्यावरण की बर्बादी के लिए सिर्फ इंसान ही जिम्मेदार है।

पर्यावरण को विभिन्न परतों जैसे वायुमंडल, जलमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल में विभाजित किया गया है। वायुमंडल कई गैसों जैसे नाइट्रोजन और ऑक्सीजन से बना है। सभी जल निकाय जलमंडल बनाते हैं। लिथोस्फीयर पृथ्वी का आवरण है जो चट्टान और मिट्टी से बना है। जीवमंडल में जीवन मौजूद है।

  • हमारे चारों ओर जो कुछ भी है, उसे पर्यावरण कहा जाता है।
  • पर्यावरण को स्वच्छ और हरा-भरा रखना सभी का दायित्व है।
  • सभी जीवित और निर्जीव जीव पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं।
  • वृक्षारोपण, पुनर्चक्रण, पुन: उपयोग, प्रदूषण कम करने और जागरूकता पैदा करके पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
  • एक स्वस्थ वातावरण सभी जीवित प्रजातियों के विकास और पोषण में मदद करता है।
  • हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी को ‘नीला ग्रह’ के नाम से जाना जाता है। फिर फिर, यह एकमात्र ऐसा है जो जीवन को बनाए रखता है।
  • पर्यावरण प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिंग, अम्लीय वर्षा और प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास होता है।
  • पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली किसी भी गतिविधि में कभी भी प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।
  • सभी को यह मानना ​​चाहिए कि पौधों और पेड़ों को बचाना उनका कर्तव्य है। पर्यावरण की रक्षा के लिए प्लास्टिक के प्रयोग से बचें।
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FAQ | पर्यावरण

Q1. पर्यावरण से आप क्या समझते हैं

उत्तर – यह जीवित चीजों को स्वस्थ और हार्दिक बनाए रखने में एक जोरदार भूमिका निभाता है। यह पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।

यह भोजन, आश्रय, वायु प्रदान करता है और मानव की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है।

इस वातावरण के अतिरिक्त प्राकृतिक सौंदर्य का स्रोत है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

Q2. पर्यावरण का अर्थ

उत्तर – वह वातावरण जिसमें सम्पूर्ण जगत, ब्रह्माण्ड या जीव-जगत घिरा हुआ है, पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण पृथ्वी पर प्रभावकारी दशाओं का ऐसा योग है जिसमें मानव, जीव-जन्तु तथा पादप समुदाय रहते हैं। ये सभी तत्त्व अपनी उत्पत्ति, विकास तथा कार्य-प्रणाली के अन्तर्गत पर्यावरण से प्रभावित होते हैं तथा पर्यावरण के साथ समायोजन करके इसे भी प्रभावित करते हैं।

Q3. पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है

उत्तर – विश्व पर्यावरण दिवस हर साल जून महीने में मनाया जाता है। दुनियाभर के तमाम देश 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाते हैं। इस साल भी पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए भारत समेत कई देशों में 5 जून को पर्यावरण मनाया जा रहा है।

Q4. पर्यावरण क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर – पर्यावरण हर किसी के जीवन में एक आवश्यक भूमिका निभाता है। यह सभी जीवों का एकमात्र घर है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पर्यावरण हवा, भोजन, पानी और आश्रय प्रदान करता है।

Q5. मानव द्वारा किन प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है?

उत्तर – मनुष्य पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों का प्रमुख उपभोक्ता है। वे जानवरों और पौधों से खाद्य उत्पाद प्राप्त करते हैं। वस्त्र मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। वह फिर से उन्हीं उल्लिखित संसाधनों से कपड़े प्राप्त करता है।


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